सेतुबन्ध | Setubandh

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Setubandh by रघुवंश - Raghuvansh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ঙ संस्कृत के महाकाव्यों के पूव हुई होगी | प्रकृति चित्रण की शैली से भी यही सिद्ध होता है। इसमें प्रकृति का जो रूप उपस्थित किया गया है, उससे स्पष्टतः यह जान पड़ता है कि इसका रचयिता दक्षिण का हैं, उत्तर का नहीं | इस प्रकार वाकाटक वंश के प्रवरसेन द्वितीय को सेतुबन्धः का वास्तविक रचयिता मानने की श्रोर ही तकं हमको ले जाते हैँ 19 प्रथम आश्वास : सेतुबन्धः मे मंगलाचरण के रूप सेतुबन्ध की विष्णु तथा शिव की स्त॒ति की गई है ८१८ )। कथां का विस्तार इसके बाद कथा-निर्वाह की कठि नाई का उल्लेख (६), काव्य का माहात्म्य (१०), काव्य-निर्वाह की दुष्करतां (११), कथा का संकेत (१२) है । मुख्य कथा का प्रारम्म इस सूचना से होता है कि राम ने बालि का वध करके सुग्रीव को राजा बना दिया है द्रोर्‌ वा-काल बीत चुका है। राम ने वर्षा-ऋतु को निष्क्रियता की स्थिति मे क्लेशपूवंक बिताया है ( १३-१५ ) | शरद ऋतु का आरम्भ नवीन प्रेरणा के रूप में होता है, शरद का चित्रमय वणन ( १७-३४ ) है । हनूमान को गये अधिक दिन हो जाने के कारण राम सीता-वियोग में दुःखी हैं (३२५), हनूमान वापस आते हैं (३६), वे समाचार तथा मणि प्रदान करते हैं (३७-३६) । राम सीता की स्मृति से रोमांचित होते हैं, पर क्रुद्ध भी (रावण के प्रति) होते हैं (४०-४५), और अपने धनुष पर दृष्टि- पात करते हैं, इससे सुग्रीव को संतोष होता है (४६-४७) । लंकामियान की भावना से राम की दृष्टि लक्ष्मण, सुग्रीव तथा हनूमान पर पड़ी (४८) | तद न्तर राम सेना सहित लेकाभियान के लिए यात्रा करते हैं ओर विन्ध्य, सद्य पव॑तों को पार करते हुए दक्षिण सागर-तठ पर पहुँच जाते हैं (४६-६५) । द्वितीय आश्वास : राम अपने सामने फैले हुए. विराट सागर के अद्भुत सौन्दय को देखते हैं (१) और इसी रूप मे सागर का कणन किया जाता है । समी सागर को देख रहे हैं ( २-३६ )। सागर-दर्शन গস ८५.०५८ १ १ इन समस्त तरा की स्थति आगे के निवेचन से स्पष्ट हो जायगी |




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