ध्रुव - यात्रा | Durva Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.937 GB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भवन््यात्रा ११
“बड़े आदमी बड़ा नाम चाहते हैं| में तो मघु कहती हूँ।”
“तो वह भी ढ़ीक है; माधवेन्द्रबह्मदुर खूब है !””
“तुम जानो । मुझे; तो मधु काफी है।””
इस. तरह कुछ बातें हुई ओर बीच ही में ज़रूरत हुई कि दोनों
खेल से उठ जाएँ ओर कहीं जाकर आपस की सफाई कर लं ।
दूर ज्मना किनारे पहुँच कर राजा ने कहा--“अब कहो,
मुम क्या कहती हो ¢
“कहती हूँ कि तुम क्यों अपना काम बीच में छोड़ कर
आये ९?
“मेरा काम क्यों है ९?”
“मेरी ओर मेर बच्च की चिन्ता ३रूर तुम्हारा काम- नहीं
है। मेने कितनी बार तुम से कहा, तुम ससे स्याद्) के लिये हो ।”
“उर्मिला, चब भी मुक्से नाराज रहो १ 41.
“नहीं, तुम पर गर्वित हूँ |?”
“मैने तुम्हारा घर छुड़ाया। सब में रसबा किया । इज्जत
ली । तुमको ऊबेला छोड़ दिया। बमिला, मुझे जो कहो थोड़ा।
पर अब बताओ, मुमे; क्या करने को कहती हो ? [में तुम्हारा हूँ ।
न रियासत का हूँ, न भ्रव का हूँ । में बस, तुम्हारा हूँ।
अब कहो ।”
“देखो राजा, तुम; भूलते हो। गिरिस्ती. फी-सी बात न
करो । महाप्राणों की मर्यादा ओर है |! तुम उन्हीं में हो + मेरे! लिये
क्या यह् गोरव कम है कि में तुम्हारे पुत्र की माँ हूँ | मुझे दूसरी
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