आदर्श साहित्य | Adarsh Sahitya

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Adarsh Sahitya  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७. ५ आदश साहित्य दिया करता था। सेनाओं * की प्रत्येक गति की खबर ईरा- नियो को मिल जाती थी और उसका मुकाबला करने के लिए, उन प्रयत्नों को! विफल बनाने के लिए वे प्रहले से तैयार हा जाते थे। यही कारण था कि जान लड़ा देने पर भी यूना- नियो का विजय-प्राप्ति न हाती थी । इस देशद्रोह के पुरस्कार मे पासोनियस को मुहरों की यथैलियाँ मिल जाती थीं | इसी कपट से कमाये हए धन से वह भेग-विलास करता था, उस समय जब कि देश पर घोर सङ्कट पड़ा हुश्रा था उसने अपने खदेश का अपनी वासनाओं के लिए बेच दिया था, अपने विलास के सिवा उसे श्रोर किसी बात की चिन्ता न थी, कोई मरे या जिये--देश रहे या जाय--उसकी बला से | केवल अपने .कुटित्त खा्े के लिए देश के पेरों में गुल्लामी की बेड़ियाँ डलवाने पर तैयार था। पुजारिन अपने बेटे के दुष्टा- चरण से अनभिज्ञ थी । वह अपनी अधेरी कोठरी से बहुत कम निकलती थो, वहीं बेटी जप-तप किया करती थी । पर- लक-चिन्तन में इहलोक कौ खवर न थी, बाहर की चेतना शून्य-सी हा रही थी । वह इस समय भी कोठरी के द्वार बन्द किये अपने देश के कल्याण के लिष्क, देवो की बन्दना कर रहो थो कि सहसा उसके कानों में आवाज्ञ आई---यही द्रोही . है, वही द्रोही है। उसने तुरन्त द्वार खालकर बाहर की ग्रोर भफोंका, पासा- . नियस के कमरे से प्रकाश की रेखाएँ निकल रही थीं. और.




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