ब्रजभाषा और उसके साहित्य की भूमिका | Brajbhasha Aur Uske Sahitya Ki Bhoomika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कब्नोजी. -- ब्रज
चलो द चल्यो, चल्यो,
1 মি चलो, चलौ।
४ गश्रों गश्नौ।
५ परन्तु, साहित्यिक 'कन्नौजी! ओर श्रजभाषा' मेँ विशेष अ्रन्तर नहीं दिखाई
^ देता | कुछ लोग 'कन्नौजी' को अवधी' की ओर भी घसीटते हैं । असल बात यह
| है कि इसमें अच्छे साहित्य का भ्रभाव होने के कारण यह भाषा अशक्त पड़ी हुई
| है और अन्य पड़ोसी भाषाए' इस पर अपना प्रभाव विद्येष रूप से डाल रही हैं ।
डॉ० धीरेन्द्र वर्मा के ये भी विचार हैं कि ब्रजक्ष त्र में नेनीताल की तराई
का भाग सम्मिलित न किया जाए, और वृल्देली' को हिन्दी की एक श्रलग
. स्व॒त्त्र बोली न मानकर ब्रज की दक्षिणी उपबोली कहा जाए । इसमें सन्देहं
|| नहीं कि बुन्देली पर ब्रजभाषा का ही अधिकार पाया जाता है। इन सब बातों
||| को स्पष्ट करने के लिए अभी भाषा सम्बस्धी एक गहरी छान-बीन की भ्रावक्य-
कताहे। वैसे, विशुद्ध ब्रजभाषा का व्यवहार मथुरा, भ्रलीगढ़ और आगरा `
जिला के पश्चिमी भाग में होता है। शेष ब्रजक्षेत्र पर पार्व॑वर्ती भाषाश्रों का `
प्रभाव है। कच्नौजी के प्रभाव से एटा, मेनपुरी और बरेली जिलों में; खड़ीबोली
... के प्रभाव से बदायू' जिला में; तथा भदौरी ( बुन्देली ) के प्रभाव से ग्वालियर
रियासत्त के उत्तर-पद्चिम भाग में ब्रजमाषा का भूतक्ालिक कृदन्त “चल्यौ' और
` वस्यो लो हो जाता है । राजस्थानी के प्रभाव से भरतपुर सियासत, करौली
` का परिचमी भाग श्नौर जयपुर सियासतके पूर्वीभाग मे; तथा मेवाती के प्रभाव
.. से गुड़गाँव जिला में चल्यो' और “चल्यो” का रूप केवल “चल्यो” होता हे ।
...._ ऐसा इसलिए होता है कि ब्रजक्षेत्र के पूर्वी भाग वाली पड़ोसी भाषा प्रों--कन्नौजी
खडीबोली प्रादि-- मे बिनाध्य' वाले रूप ( चलो) के प्रयोग की; और उसके
... प्श्चिमी-दक्षिणी भाग की पड़ोसी भाषा--राजस्थानी में य सहित रूप (चल्यो
के प्रयोग की विरेषता है! इससे एक बात यहु भौर प्रकट होती है कि ब्रजभाषा ।
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