नयी समीक्षा | Nayee Sameeksha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
133 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9
है, इसी से इस बांत का खंण्डंन हो जाता है किं समस्त प्राचीन कला ने सदैव
शोषक वर्ग के हितों की ही अभिव्यञ्ञना की है। कलाकारों का उस वर्ग से क्या
सम्बन्ध होता है जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, इस प्रश्न पर माभ्संकी एक
बढ़ी स्पष्ट उक्ति है
हमें यह न सोचना चाहिए कि विचारों के ज्षेत्र में निम्न मध्य वर्ग के जितने
प्रतिनिधि हैं, वे सभी दूकानदार हैं या दूकानदारों के जोशीले हिमायती हैं | अपनी
शिक्षा-दीक्षा ओर अपनी व्यक्तिगत स्थिति के अनुसार उनमें आकाश-पाताल का
अंतर हो सकता है। पर तो भी जो चीज़ उन्हें निम्न मध्यवरग का प्रतिनिधि
बनाती है, वह यह है कि उनके विचारों की सीमा-रेखा वही होती है जो निम्न मध्यवर्गं
के जीवन -की, और परिणामतः अपने सिद्धान्तों द्वारा वे उन्हीं समस्याओं और
उनके समाधानों पर पहुँचते हैं जिन पर निम्न मध्यव्ग अपने आर्थिक हितों और
व्यवहार क्षेत्र की अपनी सामाजिक स्थिति की दृष्टि से पहुँचता है। यही सम्बन्ध
सामान्यतः किसी वर्ग के प्रतिनिधि साहित्यिकों तथा राजनीतिज्ञों का उस वर्ग से
होता है जिसका कि वे प्रतिनिधित्व करते हैं |? क्
इसलिए यह कहना कि किसी लेखक की विचार-धारा उसकी आर्थिक और
सामाजिक स्थिति से इस बुरी तरह जकड़ी होती है कि वह हिल-डोल' नहीं सकता,
माक्संवाद् की यंग तोड़ना है । जिस वर्ग में कलाकार जन्म लेता है उसके लौकिक
दृष्टिकोण के अनुसार उसकी एक विशेष विचारधारा जन्म से ही बन जाती है।
अगर उसके संरक्षक भी उसी वर्ग के हुए! तो वह माँ के दूध के साथ ग्रहण किये
हुए. अपने जीवन के दृष्टिकोण से पूरी तरह संतुष्ट रहेगा और उसको अपनी ऋृतियों
में अभिव्यक्त भी करेगा | लेकिन विशेष परिस्थितियों में ऐसा हो सकता है कि
वह अपने वगहितों के विरोध में खड़ा हो जाय; कमी कभी ऐसा भी हो सकता है
कि कलाकार के रूप में अपनी ईमानदारी और अपनी सचाई को बनाये रखने के
लिए, अपने वर्गहितों का विरोध. करना उसके लिए अनिवाय हो जाय | |
महान् लेखकों ने कमी-कमी संपूर्ण वर्गद्रोह किया है ओर प्रायः सभी महान् कला-
कारों ने कुछ विशेष बातों में अपने वर्गहितों का विरोध किया है, अवश्य किया
है | यह सच्र बिलकुल ठीक है। लेकिन नियम के इन अपवादों से इस ऐतिहा-
सिक सत्य पर आँच नहीं आती कि किसी युग का लेखक सामान्यतया अपने
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