जीवन और साहित्य | Jivan Our Sahitya

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Jivan Our Sahitya by उदयभानु सिंह - Udaybhanu Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ “ठेठ हिन्दी का ठाठ” आदि उपन्यासों में उपन्यास कौशल न होते हुए भी भाषा का वेचित्र्य और लज्जाराम मेहता के उपन्यासो मे हिन्दू धमं जौर समाज का चित्रण है । हिन्दी-उपन्यासों की सर्वेतोम्‌खी प्रगति सं० १९७५ के पदचात्‌ हुई हे । राधिकारमण प्रसाद सिह, प्रेमचंद, विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, जयशंकर प्रसाद, प्रतापनारायण श्रीवास्तव, सुदर्शन, जेनेन्द्रकूमार, बेचन शर्मा उग्र, यशपाल, निराला आदि ने देश की सामाजिक और राष्ट्रीय स्थिति का निरू- पण किया । किसान और जमींदार, शिक्षित और अशिक्षित, ग्रामीण और नगर निवासी, मंजदूर और मिल मालिक, विद्यार्थी और अध्यापक आदि का चरित्र-चित्रण हुआ । ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना अधिक नहीं हुई । इस क्षेत्र में वुन्दावनलाल वर्मा का स्थान अन्यतम ह । उनके प्रसिद्ध उपन्यास ज्लांसी की रानी ओर 'मृगनयनी' का हिन्दी साहित्य में बड़ा मान है। भगवती- चरण वर्मा ने अपने चित्ररेखा उपन्यास में दाशेनिक चिन्तन की सामग्री प्रस्तुत की । जैनेद्धकमार, इलाचंद्र जोशी और अज्ञेय ने मनोविश्लेषण- प्रधान उपन्यास लिखे। विगत पेंतीस-चालीस वर्षो में उपन्यास-कला का सम्यक्‌ विकास हुआ । रेखक ने व्यथं घटनाचक्र या वस्तु-विस्तार का त्याग करके अपेक्षित कथा- वस्तु की योजना की । समाज की विभिन्न दशाओं ओर संस्कारों कौ छानबीन क्री गयी । जीवन के विविध रूपों का विवेचन किया गया । रम्बी-चौडी भूमि- कओं काः वहिष्कार किया गया । उपन्यास को अनावश्यक कवित्त्व से मुक्त करने की चेष्टा की गई । च्‌भते कथोपकथन वणेन या विदकेषण कं द्वारा भावों ओौर विचारों को मार्मिक अभिव्यंजना की गयी । बाह्यवणं की अपेक्षा पात्रों की अन्तःप्रकृति का व्यापक विदरेषण प्रस्तुत किया गया । এ आलोचना हिन्दी-साहित्य ` मे आरोचना का वास्तविक आरम्भ बालकृष्ण भदू ओर बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन' ने किया । उन्नीसवीं रती ईसवी के अन्तिम १५. वर्षो मं आलोचना विषयक अनेक रचनाएं प्रकाशित हुई । अंगाप्रसाद अग्निहोत्री को समालोचना नामकं पुस्तक, जगन्नाथदास “रत्नाकर




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