आधुनिक हिंदी साहित्य का विकास | Adhunik Hindi Sahitya Ka Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूसिका | यहाँ भक्ति श्र रीति काल की श्ंगारिक कविताओं तथा झाधुनिक काल की शंगारिक कविताओओ में श्रंतर स्पष्ट है । आ्राधुनिक काल में उपमा शऔर रूपकों की परंपरागत रूढियों का निर्वाह नहीं है वरन्‌ वे सब नवीन और स्वतंत्र हैं तथा प्रकृति से ली गई हैं । इस युग की श्ंगार-भावना भी रीतिकाल से सिन्न है। मतिराम के इस सवैया में कुंदुन को रँग फीको लगे मलके अति झंगनि चारु गोराई झांखिन में झलसानि चितौन मे मंजु विलासन को सरसाई । को बिन मोल बिकात नहीं मतिराम लहे मुसुकानि-मिठाई ? उ्यों ज्यों निददारिए नेरे हे नेननि त्यों त्यों खरी निक्करे सी निकाई ॥ कवि की नायिका का रूप हम श्पनी श्राँखों के सामने स्पष्ट देख सकते हैं। वद्द काल्पनिक नहीं वरन्‌ सत्य है उसका सौन्दर्य झतीन्द्रिय नहीं है हम अपनी सामान्य इन्द्रियों से उसका झतुसव कर सकते हैं। किन्तु श्राधुनिक नायिका की केवल कल्पना की जा सकती है। निराला की एक नायिका देखिए चंचल झंचल उसका लहराता था-- खिंची सखी-सी वह समीर से गुप. शघुप.... बातें... करता-- कभी ज़ोर से घतलाता था चिकसित-कुसुम-सुशोमित असित सुवासित कृंचित कच बादल से काले काले उढ़ते लिपद उरोजों से जाते थे मार मार थपक्यों प्यार से इठलाते थे झूम सम कर कभी चूम लेते थे स्वणं-कपोल जल-तर ग सा रग जमाते हुए सुनाते घोल ।... इत्यादि ख गारमयी माधुरी जनवरी १९२४ इस काल की श्ंगार-मावना विशुद्ध बुद्धिवादिनी है। वीर शंगार श्र भक्ति के श्रतिरिक्त करणा और प्रकृति-चित्रण से पूण कवितायें भी इस काल में पर्यास मात्रा में मिलती हैं। किन्ठु इन सभी कविताओं का श्राधार मानसिक है ।




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