वेळी किसान रुकमनी री | Veli Kisan Rukmani Ri

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Veli Kisan Rukmani Ri by स्व. महाराज श्री जगमाल सिंह जी साहब - Sw. Maharaj Shree Jagmal ji Sahab

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूसिका लगी है श्रौर आजकल तो संस्कृत एवं प्राकृत की भाँति कृत्रिम एवं सृत्त-भाषा मात्र रह गई है । यहाँ पर राजस्थानी की उत्पत्ति एवं आरंभ की विषय का कुछ थोड़ा सा उल्लेख कर देना उचित होगा | प्राचीन झार्य्यों की भाषा वैदिक संस्कृत थी । उससे धीरे धीरे संस्कृत निकली । भाषा मे परि- वतन होना एक प्राकृतिक नियम है । धीरे धीरे संस्कृत मे भी परिवर्तन होने लगा । यास्क एवं पाशिनि की संस्कृत से कात्यायन की संस्कृत अधिक विकसित जान पढ़ती हैं एवं कात्यायन की संस्कृत से पातंजलि को संस्क्त श्ौर भी श्रधिक विकास कर चुकी थी । इसके अतिरिक्त साधारण लोग शिक्षित की भॉति भाषा की शुद्धता का विशेष ध्यान नहीं रखते जिससे धीरे धीरे उनका उच्चारण शिष्टो के उच्चारण से दूर पढ़ता जाता है | संस्कृत का धीरे धीरे एक दूसरा रूप हो गया जिसे जनसाधारण बोलता था । दोनो मेदो को जुदा जुदा बताने के लिए एक का माम संस्कृत झौर दूसरे का प्राकृत पढ़ गया । इनका संबंध उस काल में संभवत वही था जा झाजकल हिंदी श्रार उसकी वोलियों का है । पढ़े लिखे लोग हिन्दी बोलते है परन्तु जनसाधारण यद्यपि हिन्दी समभ सकते हैं अपनी प्रान्तीय बाली ही बालते हैं । पाली सबसे पुरानी प्राकृत है । वेद्ध-धर्स्म की पुस्तकें इसी पाली भाषा मे लिखी गई है | झशोक के ज़माने तक जनसाधारण से यही भाषा प्रचलित थी । पाली के बाद प्राकृतों का विकास हुआ धीरे धीर प्राकुतों मे साहित्य-रचना होने लगी झार वे शिष्ट लोगों के बोलने की भाषायें बन गई । उनका व्याकरण बना श्रौर शुद्ध प्रयोगों का ध्यान रखा जाने लगा । पर जन-साधारण की भाषा बदलती गई पार प्राकतें अब उस रूप को पहुँची जो आजकल अपभश कहलाता है । अपभ्रंशो में भी नागर झऔर आवन्ती अपध्रश से धीरे धीरे साहित्य मे पैर दिया शौर इससे संदेह नहीं कि उनमें अच्छा




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