वेळी किसान रुकमनी री | Veli Kisan Rukmani Ri

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : वेळी किसान रुकमनी री  - Veli Kisan Rukmani Ri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्व. महाराज श्री जगमाल सिंह जी साहब - Sw. Maharaj Shree Jagmal ji Sahab

Add Infomation About. Sw. Maharaj Shree Jagmal ji Sahab

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूसिका लगी है श्रौर आजकल तो संस्कृत एवं प्राकृत की भाँति कृत्रिम एवं सृत्त-भाषा मात्र रह गई है । यहाँ पर राजस्थानी की उत्पत्ति एवं आरंभ की विषय का कुछ थोड़ा सा उल्लेख कर देना उचित होगा | प्राचीन झार्य्यों की भाषा वैदिक संस्कृत थी । उससे धीरे धीरे संस्कृत निकली । भाषा मे परि- वतन होना एक प्राकृतिक नियम है । धीरे धीरे संस्कृत मे भी परिवर्तन होने लगा । यास्क एवं पाशिनि की संस्कृत से कात्यायन की संस्कृत अधिक विकसित जान पढ़ती हैं एवं कात्यायन की संस्कृत से पातंजलि को संस्क्त श्ौर भी श्रधिक विकास कर चुकी थी । इसके अतिरिक्त साधारण लोग शिक्षित की भॉति भाषा की शुद्धता का विशेष ध्यान नहीं रखते जिससे धीरे धीरे उनका उच्चारण शिष्टो के उच्चारण से दूर पढ़ता जाता है | संस्कृत का धीरे धीरे एक दूसरा रूप हो गया जिसे जनसाधारण बोलता था । दोनो मेदो को जुदा जुदा बताने के लिए एक का माम संस्कृत झौर दूसरे का प्राकृत पढ़ गया । इनका संबंध उस काल में संभवत वही था जा झाजकल हिंदी श्रार उसकी वोलियों का है । पढ़े लिखे लोग हिन्दी बोलते है परन्तु जनसाधारण यद्यपि हिन्दी समभ सकते हैं अपनी प्रान्तीय बाली ही बालते हैं । पाली सबसे पुरानी प्राकृत है । वेद्ध-धर्स्म की पुस्तकें इसी पाली भाषा मे लिखी गई है | झशोक के ज़माने तक जनसाधारण से यही भाषा प्रचलित थी । पाली के बाद प्राकृतों का विकास हुआ धीरे धीर प्राकुतों मे साहित्य-रचना होने लगी झार वे शिष्ट लोगों के बोलने की भाषायें बन गई । उनका व्याकरण बना श्रौर शुद्ध प्रयोगों का ध्यान रखा जाने लगा । पर जन-साधारण की भाषा बदलती गई पार प्राकतें अब उस रूप को पहुँची जो आजकल अपभश कहलाता है । अपभ्रंशो में भी नागर झऔर आवन्ती अपध्रश से धीरे धीरे साहित्य मे पैर दिया शौर इससे संदेह नहीं कि उनमें अच्छा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now