आतशी नाग | Aatashi Naag

Aatashi Naag  by काशी - Kaashi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आतशी नाग । ९ हैं, कोई कबाबखार है, कोई हरामसोर ३, कोर हत्ाटसखोर है, मगर में जारूुखार है। यानी दर दूसरे तीसर साल एक नई शादी करता हू । और शादी के हर दूसरे तीसरे महीने बीषी को जन्नत में झाड़ देने के लिये दुनिया स रवाना फरता है । चुनांच आप लोगों की दआ की बरकत स सात शादियां कीं और सातों को हज़म कर चका है | मगर आठवीं सकीलगिज़ा की तरह बचती रही | कमबख्त न नाफ में दम कर रखा है पहिले रोज़ आई भौर कहने लगी मियां आज मेरे चचा के के की शादी है, मझे वहां जाना दं । मेने कहा, अच्छा जाओ । लीजिय, वह चली नखरे स। जब दूसरा दिन हुआ फिर वेससी फी वेखी मोज़द हैं। मन कहा, क्यों कया है; कहने लगी मियां आज मेर भाई के यहां छड़का पंदा हुआ है, इस- लिय उसको देखने जाना दे । मने फद्दा अच्छा जाओ; लीजिये वह चत्टी मटकफती हुई।अरे यारा! फेसा चचा आर केसा भाई । जब उसने देखा कि मुझ उदल की पट्टा को मियां भी उल्लू का पद्ठा मिल गया है, तो बघड़क होकर खुल लिखा ओर हर रोज़ नय नये बहाने गढ़कर अपने पराने आशिकों से मिलना शुरू कर दिया । अफ़सास, अगर मेने पदुतरही से काब़ में रकखा होता, उठते लात ओर बेठते जूता रशीद किया होता, तो आज के राज़ द्ाथ म॑ सोंटा लेकर यह पहरा दन की नॉबत न आती | ( घर की तरफ मुंह करके आवाज देना ) तन्नाज़् ! ओ तन्‍नाज़ !! है, जवाब नदारत। कहीं चल्ठ तो नहीं दी ? अरा तन्नाज़ ! आ तन्नाज़ | दत्त तझ खदा रांड करे | बच्चा, माठम होता हें फरार हा गद । नवेटी, ओ नवर्टा । नवेली-जी जी जी । मिजा झक्की - लो, थद्द टूटी हर नफीरी भी सुर भें बोल्ठती हुई




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