श्रीसन्नयासगीता | Shreesannyasgeeta

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Shreesannyasgeeta by काशी - Kaashi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शीसन्न्यासगीता । ' डे ट्राप्तेप्तरम्भाजस्दूमिः कटपटक्तससद्धिमिः पनसाश्वत्थन्यग्रो थे: प्रगेः किशुकचन्दनेः ॥ १३ ॥ कुन्दैः फुरवकैर्नपिर्दिग्यपुष्पफरुच्छदेः । दरभेः कामदुधरन्येः भपृणच्ाऽतिशेमनम्‌ ॥ ९४॥ मनो्तकुसमामोदनानावीरद्विसलितम्‌ । मष्िकामाधवीजातिषासन्तीभिः सुपरिडतम्‌ ॥ १५ ॥ सरित्सयोभिरच्छोदेखसटर चिरबाटुकेः । कुमुदोत्पलकलहारशतपत्रादिशोभिते: ॥ ६ ॥। हसपारसकादम्वचक्रारन्धकछस्वनः । गु्द्रमरञ्ड्ारनादितेः समुड्तेम्‌ ॥ ५७ ॥ © फठमृलात्नदन्तश्वारङृष्णाजनस्विर्‌, || सूयदेन्वानरसमस्तपसा भाविताय, ॥ ९८ ॥ महर्पेमिर्मोसिपरैयति िर्नियदेन्द्रिये! । न्रझमभृतेमहाभागेरपेदे ब्रह्चादिमिः ॥ १९ ! _ __--_--________ पु्नाग, चम्पा, दाख, ष्रखः क्ेखा,जस्बृ, पनस, अश्वत्थ, न्यश्नोघ, सुपारी, फिंशफ्त, चन्दन, कुन्द, झुरवक, नीप ओर फामफलप्रद अन्य इक्षा स पणी बौर सुरोमित द ॥ ११९४ ॥ जो सुन्दर पुष्पों, की खुगल्थि- वाली अनेक विस्तृत ऊताओं से विराजित है आर माता माघवी, जाति और चासन्ती छताओं से स्माण्डत ह ॥ १५॥ जो स्वच्छ जल वाटे, चमरीरी सुन्दर वालुकावाले, झुसुद्‌; फमल कददार और शतपन्नादि से खुशनोशित, दस्त सारस्र फादग्य और चक्कचार्कोकी गर्भीर चदचहाय से युक्त प्ब॑ गुजत हुए भवर्क झडारसे निनादित नदी ओर ताढावासे समकझुत ड! जो फर आर प्र सक्षण करनेवाे, तप के के को सदनं करनेवाले, सुन्दर कृष्ण सगचस्म के वखवाटे, सूय्यं ओर अग्नि के समान तंजस्दा, तप के झ्ारा आत्मसाध्तास्कार करनेवाले, इन्द्रियसंयमी, रोक स तत्प त्रह्मवादी, घ्रहमस्वरूप, संयमशील, मद्दासाग महर्पियों से झुक्त डै। जो जलमात्र पान करनेवाले, वायुमात्र पान करना, पत्त बसि




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