प्रेमचंद और शरतचन्द्र के उपन्यास | Premchand Aur Sharatchandar Ke Upanyas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्रेमचद और शरतचर्द दोनों उपन्यासवारों ने प्रेम में अतृप्ति वा सेल जिया
है । दोनों बथावारों का विचार है हि प्रेम से तृप्ति सम्भव ही नहीं। प्रेमचर्द ने अपने
दृष्टिकोण बी रपट बरते हुए लिखा है-- प्रेम वह प्याज्ा नहीं है जिसमे आदमी छक
जाए, उसतो मचा सदैव बनी रहती है । शरतचस्द के अधिकाद पात्र प्रेम में अतृप्ति
ধা भधोधणा बरते है । 'अचटा' (गृरदाह), 'देवदास', पार्वती' (देवदास), किरणमयी'
(धरिव़ीन) आदि पात्रों में हरतचद् के इस दृष्टिकोण को देखा जा सकता है।
ब्रेभभन्द, प्रेम में उत्ग्ग हो जाने की भावना के समर्थक हैं | इस वारण प्रेमचन्द
के उपन्यासों में प्रेम उन्नयन थी ओर उस्मुस अवित हुआ है। प्रेमचन्द सयम और
भर्यादा के प्रवठ सम्व हैं । प्रेमचन्द के पात्र प्रेम में उत्साह तो प्रदर्शित करते हैं क््ति
उन्माद वी अवम्या सत्र नहीं पहुँच पाते । प्रेमचन्द सम्भवत इसे ठीक नही समझते ।
शारनचद्द्र भी प्रेम में मर्यादा के समर्थक हैं। अपने दृष्टिकोण को अपने एक पात्र
मे दारतचन्द्र नै स्पष्ट करे हृष् लिखा है--- समाज में जिसे ब्रौरव प्रदान नहीं किया
जा सदता उसे वेवल प्रेम के द्वारा सुखी नहीं किया जा सकता | मर्यादाहीन प्रेम कया
भार शिविल होते ही दुस्सह हो जाता है । प्रेम में शरतचन्द्र मर्यादा और सयम के
सम्यक अवदय हैं कितु उनके अनुसार सयम और मर्पादा क्षब्दी को वडा कहकर अति-
रजित कर डाटा गेया है । अत शरतचनदर वास्तविकता के पक्षपाती हँ तथाहूदयकी
सुमधुर भावना का ममर्यन ही उनदी इृतियों से हुआ है । इसी से शरतचन्द्र का विचार
है कि “स्नेह की गहराई समय की स्वल्पता से हरगिज नही नापी जा सकती ।”” * तथा
प्रेम मे यदि जिसी कारण किसी समय अन्तर भी पड जाय तो उसमे परिवर्तन क्या
जा सकता है--/एक दिन जिससे प्रेम क्रिया है फिर किसी दिन किसी भी कारण
उसमें किसी परिवरतेन का अवकाद नहीं हो सकता, मन का यह अचल अडिग धर्म न तो
ना ज
हा
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