तुलसीदास का कथा शिल्प | Tulsidas Ka Katha Shilp
श्रेणी : जीवनी / Biography, लोककथा / Folklore
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
291
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कथा का विभाजन श्छ
प्रधिक पंश््लए हुए हैं। इस तरह कया-विभाजन की दृष्टि से'मानस' के बालकाण्ड भौर
उत्तरदाष्द थेष्य नहीं हैं ।
“अध्यात्म रामायण! में कथा का विभाजन तो उन्ही सांत बाष्डों में है लेकिन
का को गति किसी काए्ड में नही है, उसमे अधिकतर दर्शन शोर গন কী আই
लिक पूर्स विदेषदा हम भागे करेंगे । कया दाम मात्र के लिये या यों कहे कि वाल्मीकीय
रामायण का भनुकरण करके ही विभाजित की गयी दै! बालकाण्ड दषावत्तु से
सम्बन्धित है लेविन उत्तरकाणड में बाल्मीकीय रामायण की कड़ी हमे फिर मिल जातो
है लेकिर इसमें प्रन्तकंयार्य कम हैं ।
'सूरसागर' का विभाजन संयत है, वेवल परम्परा को तिभाने के लिये उत्तर-
काण्ड में कच-देवयाती कथा तथा देवयानो-ययाति विवाह की कथा मोर जोड़ दी गई हैं
इसके प्रलावा दुम रामायण में तो दया का स्वरूप ही मिलन है भौर
उसमे किसी तरह का विभाजन है ही नही । 'महामारत' (रामोप्रारब्यान), 'पद्मपुराण',
'श्रीमद्भागवत' भादि में कया का संश्षिप्त हप होने के कारण जहाँ भी विभाजन है
बहू संयत है
जैन पदमपुराए' में भी रामकथा विस्दारपूवक कही गद् है इसमे कया यत्र-तत्र,
बिखरी हुई मिलती है। कया का विभाजन पर्तों में है। पदुमपुराण में कुल १२३ पर्व
हैं । गौतम सवारी थेशिक से कया बहते हैं॥ पंगलाचरए के ५६चात् द्वितीय पर्व
में ही श्र िक राजा योतम स्वामी से रामचर्द्र प्रौर रावण के चरिभ्र सुनने के लिये
গহন करता है इसके बाद रार, लक्ष्मणा, भरत, शत्रुघ्न के चरित्रों के वर्णन के साथ
उनसे सम्दम्धी पात्रों का मो विस्तार से दसुंन मिलता है। १२३वें वर्व में राम की
मो्ञ-प्रप्ति कै वणन के पश्चात् रामकथा समाप्त हो जाती है ।
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