तुलसी की जीवन भूमि | Tulsi Ki Jivan Bhumi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
323
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री गोसांई-चरित्र का महत्त्व द
ये आ गये | कवि द्वारा कथित छंदों से स्पष्ट होता दे कि जदाँगीर का
विरोध उसने कई बार किया था। जहाँगीर के करता के कई তাহ
इतिहास के पृष्ठों में मिछते हैं। जह्ॉंगीर निरपराघ व्यक्तियों को भी
भाण्ड दे डालने में संकोच नहीं करता था | वह अपने मनोरंजन के
কিছ मनुष्यों को हाथी और शेर से छड़वाया करता था। “तुलुर जहाँ-
गारी मे इस प्रर की घटनाओं के उल्लेख आये हैं । उस काछ में
प्राणदूड पाये हुए व्यक्तियों को मस्त हाथी के संमुख छोड़ दिया जाता
था और ह्वार्थ! उन्हें पकड़ कर चीर दालक यथा। यह रीति केवल
जहाँगीर के शासन-क्राल ही में न थी वरन् भविकं युगल शासस
द्वारा झव्यु-दंढ का यही ढंग था |
इतना नहीं अपितु उसी क्रम में-- , :
कवि की रचनाओं से एता चलता हैं. कि बह आरंभिक्त अवस्था
में सलीम के धजुकूल था| उसने राज्यसिंह्ासनस्थ जहांगीर तथा युव-
„ राज सीम ( जहाँगीर ) दोनों की प्रशंसा की है ॥ अकबर के राजत्व-
काल में ही कबिखिलीम को ओर झुक गया था--
हाथी থাই साछ बन साँप चाहे माये मनि
पानी फो प्रवाह जैसे चाहे बेली पान फी।
संजोगिनी रैन चाह जोगी जैसे जोग चाहै `
जआतुर नायक चाह जैसे नित मान की।
चंदहि चफोर चादे पिके घनधोर घाहै
चक् चकोर जते चाहे भेट भान की।
इंस चाहै सानसर मोर चादै मेव र
मंग चाहै नजर सलेम सुल्तान की।
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