कामायानी विमर्श | Kamayani Vimarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
315
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भागीरथी दीक्षित - Bhagirathi Dixit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ कामायनी विमर्श
मीतरसे उस काव्यका दर्शन करने लगता है। यह्ट त्थिति खम्य समीक्षावे लिए घातक
है /ओऔ गशनन माधव मुक्तिबोधजी ने 'कामायनी--एक पुनर्दिचार' मामक समीक्षा-
कृतिम, इसी कोटिवी समीक्षा-पद्वत्वा अदल्म्ब ल्या है) उन्होंने उस चब्मेंसे 'कामा-
यनी'को देखा है जो अब अपने निर्मायक देश रुसमें ही हट चुका है। जिस गलत
म्यी मतर मनए स्मलिनने सन् १९३६ ई० मे केः उसे सूखे समप्ल कर्
दिया, उसे दी मुक्तियोधजी ने न जाने क्यो गौरव प्रदान किया ।
(इसका उल्नेस कर देना इसलिए आवश्यक समझा गया कि इसके कारण
कामायनीऊे विपयर्मे एक और भ्रम अस्तुत हो गया। मुक्तिबोधजीका कद्दना है कि
०क्ाममायनी ए+ फेंटेसी है, प्रखादका मनु उसी वर्गका है जिस वगकि स्वय प्रसादजी
है | उसे मनन मातया, सन साजया, प्रतिनिधि कहना सरासर गलत है| भनु एक
शदप है, उस धर्गका टाइप ज्सिदी शासन-सत्ता, ऐश्वर्य छिन गया हो ।ট #बस्तुतः
मनुवी प्रद्गात टीक उस इंजीवादी व्यक्ति वादवी प्रकृति है जिसने कमी जनतन्नात्मक्ताका
बहाना भी नहीं क्या; केवल अपने म्गनसिक खेद, अन्तर्विष्ठट और निरादासे
छुय्कारा पाने तथा रस्थ, न्तः अनुमव करनेके लिए शरद्धा ओर इटावे समान
अच्छी साथ्नोंका रुद्यरा ल्या, जो उसे सौमाग्यसे प्रास भी हुईं!” “ध्यान रहे कि
प्रसादजी वणिक थे | उनके व्यावसायिक जीवनके भी तो अपने अनुभव थे । थे यह
जामते थे कि बडा एजीपति छोटा पूँजीपतिको पहले स्पर्धामं पयजित बर, पिर उसे
आत्मसात् कर छेगा, अथवा नेस्तोनावृद कर देगा” প্রেজিবীঘলীকা মহ मत कामके
इस कयनपर दै : --
श्व नीद मनोहर कृतिर्योश्न
यद विश्व क्म रगस्थल है
है. परम्पा रुग रही यहाँ
उदरा जिम जितना चछ टै
मैं इन भर्तोपर धसंगानुसार विचार करूँगा। यहाँपर मैं इस समीक्षकके छुछ
और उद्धरण देना ठीक समझ रहा हैं। लीजिये --“अद्वैतवादने एक ओर
सामाकलिकि स्पते वचनेका' न कैवलं मायवादी रहस्यवादी यास्ता तैयार किया, वरन्
ल्यक्तिवादी, अन्तम अभिपरा्योको आत्मगरिमा मी दी । चिन्त सामन्त सामाजिक
वस्धनसे मुक्तिके वास्तविक सउर्पको ने उसने राति दी, न उस सघर्षके लक्ष्या-आदर्श
सपा उसके दौरानमें सलित होनेवाले व्यावहारिक जीवन मून्य ही प्रस्यापित क्ये।”?
+ + + श्वा यह् है कि अद्वैववादका दर्शन सपर्पफा दर्शन नहों है। पढ़
मूतः पक अमामाल्िक दर्शन है। अतएवं उसने असामाजिक प्रणालीपर ही
ब्यक्तिवादका परिस्पुटन क्या 7?
चेदान्तके अद्वैदवादको असामाजिक दर्शन बता देना अत्यधिक चापत्य
सके अतिरिक्त और क्या हो यक्ता दै! आनन्दयादकी चर्चाद অনন্য হী
User Reviews
No Reviews | Add Yours...