शिव प्रसाद सिंह और फणीश्वर नाथ रेणु के कथा साहित्य में आंचलिकता की परिकल्पना | Shiv Prasad Singh Aur Fanishwar Nath Renu Ke Katha Sahitya Mein Aanchlikta Ki Parikalpna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| 12 | का प्रतीक मानकर इस उपन्यास का कथा-क्षेत्र बनाया : इससे स्पष्ट हैकिरेणुने ही सर्वप्रथम आञ्वलिक शब्द का प्रयोग किया तथा आज्वलिक कथा-साहित्य का सृजन किया। इससे पर्वं इसी भाव-भूमि पर देहाती- दुनिया शिवपरूजन सहाय तथा बलचनमा' नागार्जुन ने उपन्यासो की रचना की, परन्तु रेणु ने ही सर्वप्रथम यह नाम' दिया) मेरे विचार से यह निश्चित है कि रेणु ने 1954 ई० में कथा की पारिभाषिक चेतना को अंचल का आधार दिया। अंचल व्यक्ति से बडा समाज से छोटा क्षेत्र, बीच की कडी या मध्यवर्ती कड़ी है जो क्षेत्रीय कथाभूमि का आधार है। इस सम्बन्ध में डॉ. शिव प्रसाद सिंह का कथन द्रष्टव्य है- “ऑआँज्चलिकता की प्रवृत्ति स्वातन्योत्तर हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक प्रवृत्ति थी जिसके भीतर भारतीयता को अन्वेषित करने की सुक्ष्म उन्तः धारणा कार्य कर रही थी।'*3 आञ्चलिकता के भीतर निम्नलिखित बिन्दु मुख्य रूप से आते है 1. अज्वल क्षेत्र” विशेष से सम्बन्धित है। 2. क्षेत्र व्यक्ति से बड़ा तथा समाज से छोटा होता है। 3. सम्पूर्ण अज्चल ही 9 प्राप्त करता है। 4. आज्चलिकता में वे समस्त सन्दर्भ आते हैं जो किसी विशज्ञेष रीति-रिवाज, रहन-सहन व आचरण के अपने भीतर प्रतिबिम्बित करते हैं। वस्तुतः अज्चल' शब्द में स्थानीयता की पहचान एक अनिवार्य शर्त है, जो उसे 2. मैला आँचल- रेणु प्रथम संस्करण 3. आधुनिक परिवेश और नवलेखन - डॉ० शिव प्रसाद सिंह




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