उपेक्षिता | Upekshita

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Upekshita by बाल्मीकि त्रिपाठी - Balmiki Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० उपेक्षिता तमि वाले के इतना कहने पर भी बिमला ने पसे देने चाहे, लेकिन उसः न लिये और पूछा-- अगर आप अभी लौटना चाहें तो मै खडा रहं क्योकि आपको इतनी रात को इस मौहल्छे मे दूसरा तागा मुरिकिल से मिलेगा । “अब तुम जाओ । हम आज रात यहीं रुकेंगे ।” तांगा वाले ने अपना तांगा घुमाया और लोट पड़ा । वियला ने फाटक. पर खड़े होकर एक बार शानदार बंगले पर दृष्टि ' डाली और आगे बढ़ीं | इसके पूर्व कि वह आगे बढ़कर बंगले में प्रवेश कर सकें फाटक से थोड़ी दूर पर ,ही द्वार रक्षक ने प्रश्न किया- “कौन है ! विभला चौंकी और घूमकर देखा तो एक नौकर दिखाई दिया । उसके प्रइन का उत्तर देने की अपेक्षा उन्होंने उससे प्रइन कर 'दिया--““कान्त बेटा है अन्दर ? ` “कौन डाक्टर साहब ? “ছা ह, डाक्टर कान्त ।*° बिमला की घबड़ाहट बढ़ती जा रही थी । “अभी तो अस्पताल से नहीं लौटे हैं, लेकिन आते ही होंगे आप उस कमरे में चलकर बैठिये तब तक । जब वह आयेंगे तो मैं आपको बता दूगा। | बिसला ने उसकी बात सुनी-अनसुनी कर दी और प्‌'छछा--.-“डाक्टर साहब की पत्नी कहाँ हैं ? ' “নানী লী।+ “पहं । “अन्दर बठके में होंगी |!” “मुझे उनके पास ले चलो 1 “इस वक्त वह अपने दोस्तों के साथ बातचीत कर रही हैं ।” “तो क्या हुआ ? ४६ न इस वक्त मैं तो क्या कोई भी नौकर उनके पास नहीं जा सकता |”




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