एकांकी - विहार | Ekanki Vihar

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Ekanki Vihar by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भोलानाथ मरता क्या न करता | मुझे तो जल्दी थी हार कर चला गया। वापस श्राया तो ये म्षे से बिस्तरा बिछुवा कर सो रहे थे शऔर पत्नी बेष्वारी श्रन्दर गर्मी में तप रही थी । पहुँचा तो कहने लगी--श्रापका इतना घनिष्ट मित्र तो मैंने देखा नहीं । आपके जाने के बाद कहने लगा--तुम तो शायद “नवाँ शहर” की हो | मैं चुप रही तो बोला--- फिर तो हमारी बहन हुई | झ्ानन्द बहन ! मोलानाथ श्रच कमला मुक से पूछने लगी कि ये कौन हैं ? मैं क्या बताता ? इतना कह कर चुप हो रहा कि हमारे वतनी हैं । चारपाइयाँ हमारे पास केवल दो थीं । श्राखिर वह गरोब सख्त-गर्मी में भी. अन्दर फर्श पर सोयी ! ख्याल था कि दूसरे दिन चले जायँँगे; लेकिन पूरे सात दिन रहे श्र जब गये तो मैंने कर्म खाकर कमला से कहा कि श्रब कभी नहीं श्रायेंगे । लेकिन यह फिर श्रा धमका है और कमला... ( कमला प्रवेश करती है ) कमला. मैं पूछुती हूँ, श्राप चुपचाप इघर-श्राकर बैठ गये हैं श्रौर वे मुझे इस तरह श्रादेश दे रहे हर जेसे मैं उनकी कोई मोल ली हु घाँ दी जा कमला पानी लादो,” “कमला द्ाथ घुलादो”, “कमला यदद करदो कमला वह कर दो,” ये कौन हैं ? श्राप तो कहते थे, मैं इन्हें जानता तक नहीं, फिर ये क्यों इघर मूँ ह उठाये चले श्राते हैं ? इन्हें कोई और ठौर-ठिकाना नहीं ? भोलानाथ ( घबराकर और कंधे काइकर ) त्रब बताओ ' * * * * * ( उठकर खड़ा हो जाता है । ) आनन्द तुम ठहहरो भाभी; मुझे सोचने दो । _..... (उठकर माथे पर हाथ रखे सोचते हुए घूमते हें । )




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