कँटीले तार | Kantele Tar

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Kantele Tar by श्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ केटीले तार बूढा लिफ़ाफ़े को इधर-उधर से पल्टकर देखत? है | ल्िफ़ाफ़ा बढ़ानखा है ओह उस पर कुछु छुपा भी है। अन्त से मत को इंढ़ बनाकर लिफ़ाफ़ा फाड़ता है। काँपते हाथों से पक्र बाहर विका उसे हुकुर-हुकुर देखता है। बह पढ़ने का प्रयत्न करता है। परन्तु उससे एदा नद्ीं जाता। मोना डलके पास आती है । बूढ़ा दाइप किया हुप्रा पन्न मोना को दे देता है। पास के बुक्ष का खूद्दारा लेता हुआ पिता कहता है--बेदी, ज्ञरा पढ़ तो ! सोना पढ़ती है : 'युद्धू-मंद्री शोक के लाथ सूचित करते हैं कि... बह शक जाती है। बूढ़ा सब स्पष्ट रूप में समझ जाता है। रोबी मारा गया | वृद्ध लड़छड़ाकर गिर पडता है, भानो उष पर बिजल्ली शिर पदे) मोना के ईह से चीख निकल्ष जाती है । खेत पर कास करनेवाले नोकर दोड़े जाते हैं। सब मिज्षकर बूढ़े को घर में ले जाते हैं। उसे बिस्तरे पर सुलझाया जाता है। लसीप ही रहनेवाला पहले क्रपाउणड का एक अंग्रेज डाक्टर সানা ই। बुद्ध को आधात तो अवश्य लगा है ; परन्तु ढर जैली कोई बात नहीं है। उसे बिल्तरे में ही ओर शान्त पढ़ा रहना चाहिए। उसकी बीमारी का बास्तविक इलाज है कि उसे ऐसा कोई भी पन्न या श्रद्धबार न दिया ज्ञाय जो उसे अशान्त कर दे | मोना की आँखों में झाँसू नहीं हैं। उसकी आँखे चमकती हैं ओर साँस तेज्ञी से चकछने लगती है। उसके मन में जमनों के क्षिए घुणा के भाव यहाँ तक बढ़ जाते हैं कि बह एक भी शब्द नहीं बोल सकती। उन्होंने उसके भाई को मार डालना ओर पिता को चोट पहुँचाई, ईश्वर अवश्य डसका बदल्ला लेगा । केसर से ही नी, परस्तु अष्येक सेन से ईश्वर इसका पुरा-पूरा बदला लेगा । यदि ऐसा न हुआ, इंश्वर ने बदला न लिया तो समकना चाहिए कि संसार सें ईश्वर है ही नहीं | ০




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