कला सौंदर्य | Kala Aur Saundarya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं ० रामकृष्ण शुल्क - Pn.Ramkrishan Shulk
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ कला और सोन्दय
अथवा नए जूतों की चर-मर में अद्भुत संगीत सुनाई दिया करता था ।
नपातुलापन, अवयवों का सामंजस्य, अवश्य कला का भी आव-
श्यक गुण ग्रवीत होता है । इस सामंजस्य से इन अवयवों का संगठन,
जिससे सब की एकता बनती है, घटित होता है। सामाजिक कलाओं में यह
सामंजस्य दिखाई देता है । प्रकति को कला में तो बह इतना दिखाई देता
हे कि दिखाई ही नहीं देता | सब कुछ इतना एकाकार, पूर्णरूप, हो जाता
हे कि अवयवों का पता ही नहीं लगता ।
फिर भो, प्रकृति मायामात्र है | वह मिथ्या है, इसलिए कि बह किसी
असल को नक्रल करती है । अतः उसके द्वारा जिस पूणंता को हम देखते
वह भी एक आभास ही हे। पूण सोन्दरय-आनन्द की वत्ति जब इसे
सममः लेती है तो मनुष्य योगी बन जाता है और चिरन्तन ज्योति के
अखिल सोन्दय को ग्राप्त कर वह अपने अखिलानन्द रूप को ग्राप्त करता
है | सच्ची कला यही है; क्योंकि सौन्दर्य भी प्रकाशरूप ही है--उससे
हमारी आँखें खुल जाती हैं। आँखें खुल जाती हैं,--कि हृदय खुल
जाता हे !
आनन्दरफुरण-रूपिणी सौन्दयवब॒त्ति अध्यात्म है, कला उसकी अभ्यास-
पद्धति ই।
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