दरिद्र नारायण | Daridra Narayan

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Daridra Narayan by ओकारनाथ पचालर - Okarnath Pachalar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मँकीन- मालकिन निष्ठुर है श्रौर वह उससे बडी कड़ी मिहनत करवाती है। मैं कैसी जगह पहुँच गया हूँ, वरवारा श्रलेक्सेयेवना , गन्दगी की खान में । तुम तो जानती हो कि मैं एंक तपस्वी की तरह रहता था: वहाँ इतनी शान्ति थी कि मक्खी के भनभनाने की भी श्रावाज साफ-साफ सुनाई पड़ती थी। श्ौर यहाँ-केवल शोर गुल, कोलाहल श्रौर बेचैनी। लेकिन इस जगह की तफसील देना तो भूल ही गया। एक लम्बे से गलियारे की कल्पना करो जहाँ हमेशा गन्दगी श्रौर घुप श्रँघेंरा छाया रहता है। दाहिनी श्रोर नगी दीवाल है श्रौर बायी तरफ दरवाज़ो की कतार, जैसी कि श्रक्सर होटलों में दिखाई देती है। एक-एक कमरे मे एक, दो या तीन-तीन व्यक्ति रहते है। बिलकुल भेड-बकरियों का. बाड़ा है। सही श्रर्थ में काल-कोठरी। फिर भी थे किरायेदार बहुत भले लोग जान पड़ते है-सुसस्कृत श्रौर सुशिक्षित। उनमें से एक किरानी है (सौभाग्य से साहित्यानुरागी )। वह सुशिक्षित है और दोमर, 2-00 २३




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