बया का घोंसला | Bayaa Ka Ghosla

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bayaa Ka Ghosla by पहाड़ी - Pahadi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पहाड़ी - Pahadi

Add Infomation AboutPahadi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श८ बया का घोसला मजदूरी के लालच में शहर की ओर चले गए । माँ त्री ओर बेटी-बहिन मनिआआडर की बाद जोहती रही | रुपयों की कौन कहे, चिट्ठी तक नहीं द्मा | अब घर की बची-खुची सम्पत्ति बेच दी गई। इस प्रकार कुछ दिन का और निर्वाह हो गया। बाप-दादो की जमीन जिससे वे कई पीढ़ियों से बंधे थे, जिसे जीवन-मरण में प्यार किया था, उसे भी बेचा | अब वह गाँव छूट गया । बूढ़े-बच्चे ओर ओरते नौकरी के लिए शहरों की ओर बढ़ गए | भौख मागना और दया का भरोसा! वे तमाम अभिलाधाएँ नष्ट हो गईं । कहीं मनुष्यता नहीं मिली। आखिर प्रेम और स्नेह का बन्धन टूर गया | पहिले गोदी के बच्चे मरे ओर फिर बूढ़े | वह गाँव की श्रावादी शहरों में मिरती चली गई । एक सामाजिक वर्णं नष्ट हो गया। खेतिहर भीख मागना नहीं चाहता है। ३० करोड़ किसान अन्न पैदा करते हैं। उस सब अ्रश्नकी आवश्यकता थी | फिर भी परिवार के परिवार शद्दरों की ओर बढ़ रहे थे । बेकारी में वे सब मारे-मारे फिरमे लगे | एक बग, एक समाज नष्ट हो रहा थ | उनके शछन्य साथी हाथ पर द्वाथ घरे ताकते रह जाते ये । सरल का वह संघर्ष ! पतकड़ की भयानक रात में सूखी पत्ती की भाँति इधर-उधर उड़ना । लिखा ही था सरल ने ३--- “तुम मणाल को शायद नहीं जानते होगे | वह साधारण मध्यवर्गीय परिवार की लडकी थी) एक सी रुपया माहवारी आामदनों, पाँच कच्चे |, और माता-पिता. .....। एक भाई मरा तो वह बहुत रोई | मैं उसे कुछ भी नहीं सममा सकी | बहिन की भौत पर वह फिर आई, बोली थी, “कल रात मैंने मोत देखली सरल ! बह दरवाजे की आड़ में चुपचाप खड़ी होकर हम सत्रको ताक रही थी | मुझे देखकर मुस्कराई। में उससे अपनी रानी को नहीं बचा सकी | सरना कठिन बात नहीं है । एक हिचकी मेंने सुनी । बस, . .... 1? | बोली थी मैं, “मृणाल, तू अपनी उपन्यास की दुनिया में मौत को पढ़ कर घबरा उठती थी | आज तुझ में बह घबराहट नहीं है। तू तो सबल हो गईं है ।?




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now