बया का घोंसला | Bayaa Ka Ghosla
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
215
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श८ बया का घोसला
मजदूरी के लालच में शहर की ओर चले गए । माँ त्री ओर बेटी-बहिन
मनिआआडर की बाद जोहती रही | रुपयों की कौन कहे, चिट्ठी तक नहीं
द्मा | अब घर की बची-खुची सम्पत्ति बेच दी गई। इस प्रकार कुछ दिन
का और निर्वाह हो गया। बाप-दादो की जमीन जिससे वे कई पीढ़ियों से
बंधे थे, जिसे जीवन-मरण में प्यार किया था, उसे भी बेचा | अब वह गाँव
छूट गया । बूढ़े-बच्चे ओर ओरते नौकरी के लिए शहरों की ओर बढ़ गए |
भौख मागना और दया का भरोसा! वे तमाम अभिलाधाएँ नष्ट हो गईं ।
कहीं मनुष्यता नहीं मिली। आखिर प्रेम और स्नेह का बन्धन टूर गया |
पहिले गोदी के बच्चे मरे ओर फिर बूढ़े | वह गाँव की श्रावादी शहरों में
मिरती चली गई । एक सामाजिक वर्णं नष्ट हो गया। खेतिहर भीख मागना
नहीं चाहता है। ३० करोड़ किसान अन्न पैदा करते हैं। उस सब अ्रश्नकी
आवश्यकता थी | फिर भी परिवार के परिवार शद्दरों की ओर बढ़ रहे थे ।
बेकारी में वे सब मारे-मारे फिरमे लगे | एक बग, एक समाज नष्ट हो रहा
थ | उनके शछन्य साथी हाथ पर द्वाथ घरे ताकते रह जाते ये ।
सरल का वह संघर्ष ! पतकड़ की भयानक रात में सूखी पत्ती की
भाँति इधर-उधर उड़ना । लिखा ही था सरल ने ३---
“तुम मणाल को शायद नहीं जानते होगे | वह साधारण मध्यवर्गीय
परिवार की लडकी थी) एक सी रुपया माहवारी आामदनों, पाँच कच्चे
|,
और माता-पिता. .....। एक भाई मरा तो वह बहुत रोई | मैं उसे कुछ भी
नहीं सममा सकी | बहिन की भौत पर वह फिर आई, बोली थी, “कल
रात मैंने मोत देखली सरल ! बह दरवाजे की आड़ में चुपचाप खड़ी होकर
हम सत्रको ताक रही थी | मुझे देखकर मुस्कराई। में उससे अपनी रानी
को नहीं बचा सकी | सरना कठिन बात नहीं है । एक हिचकी मेंने सुनी ।
बस, . .... 1? |
बोली थी मैं, “मृणाल, तू अपनी उपन्यास की दुनिया में मौत को
पढ़ कर घबरा उठती थी | आज तुझ में बह घबराहट नहीं है। तू तो सबल
हो गईं है ।?
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