भारत में अंग्रेजी राज | Bhaarat Mein Angrejii Raaj

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भारत के स्वाधीनता आंदोलन के अनेक पक्ष थे। हिंसा और अहिंसा के  साथ कुछ लोग देश तथा विदेश में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जन जागरण भी कर रहे थे। अंग्रेज इन सबको अपने लिए खतरनाक मानते थे।

26 सितम्बर, 1886 को खतौली (जिला मुजफ्फरनगर, उ.प्र.) में सुंदरलाल नामक एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। खतौली में गंगा नहर के किनारे बिजली और सिंचाई विभाग के कर्मचारी रहते हैं। इनके पिता श्री तोताराम श्रीवास्तव उन दिनों वहां उच्च सरकारी पद पर थे। उनके परिवार में प्रायः सभी लोग अच्छी सरकारी नौकरियों में थे।

मुजफ्फरनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुंदरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर कालिज में पढ़ने गये। वहां क्रांतिकारियो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेखक की कठिनाइयां इतिहास कला इस समय की इतिहास कला बहुत दरजे तक आजकल की यूरोपीय सभ्यता को पैदावार है। प्राचीन चीन, भारत, ईरान, मित्र इत्यादि में भी यह कला थोड़ी बहुत थी । इनमें से हर देश में उस देश की पुरानी सभ्यता का थोड़ा बहुत लिखा इतिहास मिलता ह । प्राचीन यूनान भौर रोम में इस कला ने और उन्नति की । अनेक यूनानी और रोमी विद्वानों के उस समय के लिखे इतिहास आज तक प्रमाण माने जाते हैं । इसके बाद अरबों का समय आया और, जहाँ तक इस कला को वैज्ञानिक रूप देने और इतिहास की सचाई को क़ायम रखने का प्रश्न है, शायद किसी भी प्राचीन क़रौम ने इस विषय में इतना अधिक परिश्रम नहीं किया जितना अरबों ने । ईसा की ११वीं सदी में प्रसिद्ध मुसलमान इतिहास लेखक, अलबेरूनी, ने इतिहास करा पर बड़ी सुन्दर वैज्ञानिक विवेचना की है और इतिहास के विद्याथियों को सावधान किया है कि हर इतिहास लेखक की अपनी अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों से कितनी तरह की भ्रान्तियाँ पैदा हो सकती हें जिनसे बच सकना लेखक के लिए अत्यन्त कठिन हैे। और भी अनेक प्रामाणिक इतिहास लेखकों और इतिहास कला विशाारदों के नाम उस समय के अरबों में मिलते हैं । किन्तु फिर भी हमें यह स्वीकार करना होगा कि विस्तृत इतिहास लिखने का जो रिवाज आजकल के समय में प्रचलित हे वह प्राचीन देशों में कहीं न था। प्राचीन संसार में, और ख़ास कर प्राचीन भारत में, आजकल के अर्थों में, अपने अपने देशों या जातियों का इतिहास लिखने का काम न इतना जरूरी समझा जाता था और न उसे इतना महत्व दिया जाता था। यही वजह हे कि प्राचीन भारत का कोई सिलसिलेवार इतिहास नहीं मिलता, और अधिकांश पुरानी सभ्यताओं के इतिहास का पता लगाने के लिए हमें उनकी पौराणिक कथाओं, तरह तरह के साहित्य, परम्परागत गाथाओं, शिखा लेखो, खुदे हुए अवशेषो, सिक्कों आदि की ही मदद लेनी पड़ती हूं । वास्तव में इतिहास लिखने की कला को इतना अधिक महत्व आजकल दिए जाने की खास वजह आजकल की मृखतलिफ़ क़ौमों की मानसिक स्थिति है। शायद मानव जाति की वास्तविक उन्नति की दृष्टि से यह कला इतने अधिक महत्व की नहीं हैं जितनी समझी जाती हैं । आजकल इतिहास का अधिकतर सम्बन्ध उस समय की राजनंतिक अवस्था से होता हैं । शायद कोई भी मनुष्य अपने समय की राजनैतिक अवस्था की ओर से पूरी तरह निष्पक्ष नहीं हो सकता । जाने या अनजाने हर लेखक के विचार किसी न किसी ओर अधिक झुकते ही हैँ । कोई दो लेखक ऐसे भी नहीं मिल सकते जो अपने समय की किसी एक घटना को या किसी खास तरह की घटनाओं को एक-सप्ता महत्व देते हों या एक ही निगाह से देखते हों। व्यक्तिगत पक्षपात या अपनी अपनी प्रवृत्तियों के अलावा हर मनुष्य के चित्त में सामाजिक, जातीय या साम्प्रदायिक प्रवृत्तियाँ भी अपनी जगह रखती ही हैं, और उस मनुष्य की लेखनी पर प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकतीं-। इसलिए आम तौर पर पूरी तरह




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