संस्कृत सूक्ति संग्रह | Sanskrit Sukti Sangrah

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Sanskrit Sukti Sangrah by सत्यव्रतसिंह - Satyavratsingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न नह कक आन कलर पाए कर च-वसस्तः वसम्त ऋतु प्रकृति के भानस्द की ऋतु है । इस ऋतु पर संस्कृत के सभी कंबियों ने लिखा है । नीचे उद्धृत श्लोक “वाह्मीकि-रामायण' के हैं । राम लक्ष्मण से बसचत्त की शोभा का चर्णन करते कह रहे हैं | सौमित्रे काल: । गन्धवान्‌ सुरशिमसी जातपुष्पफलडुम: ॥१॥ पश्य. रूपाणि. सौमित्रे वनान्त पुष्पशालिनाम्‌ ! सुजतां पुष्पबर्षाणि वर्ष लोममुचामिव ॥र॥ प्रस्तरेष च...... विविधा: काननदुसाः । वायुवेगप्रचलिताः पुष्पेरवकिरन्ति गामू ॥ ३0१ पत्ते: पतमानेश्च पादपस्थैश्व . मासतः । कुसुम: पश्य. सौमित्रें क्रीडतीव समन्तत: 11४11 विक्षिपनू विविधा: शाखा नगानाँ कुसुमोत्कटा: । सास्तश्वलितस्था ने: षट्पदेरनुगम्यते . ४11




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