जयप्रकाश | Jaiprakaash

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Jaiprakaash by रामवृक्ष बेनीपुरी - Rambriksh Benipuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय ‹ व्यक्तितर का बिका १--सिताब-दियारा यह है सिताब-द्यारा गाँव । जहाँ से गंगाज़ी ने बिद्दार में प्रवेश क्रिया है, वहाँ से--बिहार के पश्चिमी छोर, शाहाबाद जिले से--जहाँ गंगाजी बंगाल से जा मिछी हैं, वहाँ, पृणिया के पूरी छोर तक--नद्ाँ-तदाँ एक ভা কিম की भूमि बन गई है, जो दियारा कदलाती ह । यद भूमि गंगा के गर्भ में होती है, जेपे समुद्र के गभे में ठापू| चारों ओर पानी-पानी, बीच-बीच में दरी-भरी आधबादियाँ । यह भूमि कुछ अजीब होती है और अज्ञीब होते है इसके निवासी । चार पूरे महीनों तक यह भूमि बाढ़ की कौढ़ाभूमि बनी रहती है। गंगाजी की उत्तुंग लहरें चारो ओर लहरा रद्दी हैं। कभी इधर की जमीन कट कर घारा में बह गईं, कभी उधर नई जमीन उग भई ¦ जमीन कट रही है, खेत कट रहे हैं, गाँव कट रहे हैं, घर कट रहे हैं | घर कट कर गिर गये--छप्पर बहे जा रहे हैं | कभी आदमी और जानवर भी बह चले । . और, गंगा की इन विनाशकारी लहरों से अपने घर-बार को बचाने के लिए आदमी भी कम ग्रयत्वशीछ नहीं । अपनी बलिष्ठ भुजाओं से रहर को चीरता हुआ या अपनी नाव को उन लहरों पर बचाता हुआ, यह दो पेर का जानवर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघषे की হু कर देता है ! प्रकृति से को गई इस कशमकश के कारण उसके पुट्ठे ही सजबत नहीं होते, उसके हृदय मे भी निस्सीम सास संकलित द्योता रद्दता है । বাবাজী उतार पर भातो हैं, बाढ़ खत्म द्ोती है । बाढ़ के साथ ही खत्म दो जातो हैं खेतों की मेढ़ें । इन मेड़ों को लेकर भी जबतब संग्राम मचता है। जिन दह्वाथों में पहले पतवार होते हैं, उन्हीं हाथों में तलवारें चमकने लगती हैं | द ও




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