वैदिक जल - विद्या | Vaidik Jal - Vidya

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Vaidik Jal - Vidya by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मंदी सनम सकने, जेयतक उनका संबंध मेत्रोये साथ ज्ञात नहीं होता 1 इससे बेदके ग्वाध्यायका डितना महत्व है इस बातका परिजन हो सफता है | अलु | अब जलबाचक अन्य नामोंका घिंचार करे | ( ६) उदकरें सी नामेंगिं * अमृत दाप्दका पाठ किया है | देव शिम भमृत्का पान करत एि बह अमृत कृद्ध जेल ही ह। जो अन्य पय दं, जा दाराब, मेंग, चहा. वाएी आदि नामसे पापिद्ध ४ सबके सब तक ६ । शाद्ध जठके संवनसे थरररिक। आसाप्य प्राप्त दाता है | ( २) जलका दूसरा नाम सुख हु] इससे सूचित होता है कि थाद्ध और पावत्र जदकें अयोगंस झारीरक सब ( ख ) इंद्रिय ( सु ) उनमे अवाधामें रहते हैं ओर मनुप्यक सच्चा आरोंग्य प्राप्त होता है | ( ३) उदकका तीसरा नाम 'अ-श्र' तह ( नम्षरात न श्ारयात दे अश्नर ) पर का भथ पं, क्षभन्ता ॥त९ अत नायक प्राप्त हाना है | क्षय नपेदिक आदि राग जिनमें झरीस्कों श्रीणता होती रहती ६, उनका बोप 'क्षेर' याप्दस होता है | जिसके संवनसे क्षय आदि बिनालक सगे दूर होते हैं उसका नाम 'अ - क्र होता | क्षय भर अनक्षण ये धाच्द क्षर और नं -क्षर के समान, हैं । जेलम्रयोगस किन किन व्याधियांका शमन ह। सकता हू इस वतका ज्ञान इन दाध्दीक विचारसं हा हो सकता है । पाठवंमिं जो बद्य और ढैबटर होंगे उनको उचित ६ कि वे इन युणोंका भार नामोंक़ा विचार करें आर




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