कृष्ण-काव्य में भ्रमरगीत | Krishna Kavy Men Bhramargeet
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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No Information available about केशव नारायण सिंह -Keshav Narayan Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्तरह
इष्ण साधारण नायक थे ओर गोपियाँ साधारण नायिकाएँ | परंतु
आधुनिक-युग में कृष्ण के चरित्र के साथ न तो धार्मिक अलोकिक
भावना का सामझस्य हो सका ओर न कृष्ण को साधारण नायक के
रूप में ही स्वीकार किया जा सका। ऐसी स्थिति में कृष्ण अब पुरुषोत्तम
थे | इस श्रादशं-मावना के फल स्वरूप आधुनिक कवियों ने कृष्ण-
चरित्र के अलोकिक भाग के साथ उनके रसिक रूप को सी स्वतंत्र
रूप से स्त्रीकार नहीं किया है। इन कवियों ने अपने अपने ढ'ग से
इस विषय को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इस भावना के फच-
स्वरूप भ्रमरगीत का उपालंभ-काव्य इस युग मे नवीन रूपों में सामने
श्राया है । राष्ट्ीय-भावना से प्रभावित होकर और उसमें आदश-
भावना को मिलाकर सत्यनारायण कविरत्न ने भ्रमरगीत प्रठ॑ंग को
केबल यशोदा तक ही सीमित कर दिया है | यहाँ उद्धव नहीं हैं,
चरन स्वयं कृष्ण ही भ्रमर के रूप में आते हैं। इसमें माता के हृदय
की अभिव्यक्ति के साथ राष्ट्रीय-भावना की व्यंजना भी है ।
यही श्रादशं-भावनां प्रियप्रवास मे एक दूसरे रूप में मिलती है |
उपाध्याय जी ने कृष्ण के चरित्र के साथ लोक-कल्याण की भावना
जोड़ दी है। कथा-प्रतंग सभी प्रकार से ओवचित्य की सीमा में ही है ।
इन्होंने श्रमर ओर पुष्प का संकेत किया हे ओर उसके माध्यम से
नारी की विवश॒ता का भी उल्लेख किया है | परंतु इस विवशता को
कवि आदर्श का रूप देकर ही स्वीकार करता है | गुप्तजी दृदय से भक्त
लेते हुए भी विचारों में आधुनिक प्रमति से पूण परिचित हैं | इस प्रसंग
को गुस्जी ने भक्ति-भावना के चरम-छूण को व्यक्त करने के लिए ही
प्रस्तुत किया है। इस प्रधग को लेकर भक्त-कवि या तो भावावेष में प्रेम
के क्रमिक विकास को नहीं दिखा सके हैं, और या भक्ति तथा ज्ञान के
तर्को में ही उलमे रद्द गये हैं। परत गुप्तजी ने इख प्रसंग मेँ मेम-खाधना
का पूर्ण विकास दिखाया है। अन्य गोपिया यहां राधा को लेकर ही
जैसे सप्राण हैं इससे कृष्ण के घरित्र में अनेक नारियों की भावना सामने
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