अनामिका | Anamika

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Anamika by श्रीसूर्यकान्त त्रिपाठी निराला - Shree Soorykant Tripathi Nirala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि ग्रेयसी प्रथम विहग-बालिकाओं का मुखर स्वर- ग्रणय-मिलन-गान, प्रथम विकच कलि वृन्त पर नगन-तमु प्राथमिक पवन के स्पर्श से कॉँपती; करती विहार उपवन में में, छित्र-हार स॒क्ता-सी निःसङ्ग, वहु रूप-रङ्ग वे देती, साचती; मिले तम एकाएक; देख ঈ सक गहं :-- चल पद्‌ हुए अचल, आप ही अपल दृष्टि, - फेला समष्टि में चिच स्तव्य मन हुमा |. -दिये नहीं प्रार्‌ जे इच्छा से दूसरे के, इच्छा से प्राण वे दूसरे के हो गये. दूर थी, खिंचकर समीप ज्यों मैं हुई अपनी ही दृष्टि में; .




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