भारतीय और योरोपीय शिक्षा का इतिहास | Bhartiy Aur Yoropiy Shiksha Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ भरतम सार्वजनिक शिक्ताका इतिहास अखण्ड तपस्याढ़े बरुपर उन्होंने जो ज्ञानराशि एकत्र की है उसका ভঘলীল ই अकेले कर और शेष संसारके प्राणिर्योको श्रन्धकारमे डाल- कर, उनकी मूलंताका श्रनुचित छाम उठाकर, उन्हें बोद्धिक दासताके सोह-बन्धनमें बाँधकर, सदाके लिये निस्तेज, निर्दीय तथा निःशक्त बनाए रखकर उनसे झपनी सेवा कराते रहें । आयोने तामसी अथवा भोतिक तस्वोंकी प्राप्ति या उनके संग्रहके लिये हन विद्याश्रोका प्रयोग कभी नहीं किया । उन्होंने अपनी विद्या-शक्तिसे जहाँ एक श्रोर समाज ओर छोकके कल्याणके साधन एकत्र किए, वहीं उन्होंने अध्यात्म शक्तिके . संचयर्मे मो पूर्ण झक्ति क्वगाकर परम तत्त्के गृढ़तम, सूक्ष्मतम रहस्पोंकी खोज करके अपना आध्यात्मिक बेमव इतना ऋद्ध कर लिया #ि संसारकी समस्त शाक्तिं उसके सम्मुख नतमस्तक हो गदं । कमेवाव्‌ बेदिक युगमे ही झ्ायोंने इहंलोकिक ओर पारकोकिक तत्त्वोंका छन समन्वित करके यह सिद्धान्त निकाज्ञ जिया था कि संसारका प्रत्येक प्राणा कमके बन्धनरम वेधा हुआ है । वह जेसा करता है बैला ही उसे फ मोगना पड़ता हे भोर वह फल उसे या तो इसी जन्ममें मोग लेना पड़ता है या उसे मोगनेके लिये उसे दूसरा जन्म धारण करना पड़ता है। इस दूसरे जन्ममें यह आवश्यक नहीं है कि उसे मानव-क्षरीर प्रास ही हो । अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उश्चिज--हन चार झआाकरोंमेंसे किसीके द्वारा वह चौरासी ज्ञाख योनियोमेंसे किसीमें मी पढ़ सकता है । हे कमे-चकसे मुक्ति দানি फेस्से सुक्त होनेके लिये ही आयोने तीन * ॥ | | । _ ष 9, सखस्कस व किए जाये, भर्थात्‌ धर्माचरण किया जाय । २, ज्ञानकी अमे सद कम ही बल्ाकर भर्म कर दिए जाय । ३. जो सी कम किया जाय, सब इंश्वरको अपित कर दिया जाय,




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