आधुनिक ज्योति | Adhunik Bharat Kaksha-12

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Adhunik Bharat Kaksha-12 by सतीश चन्द्र मित्तल - Satish Chandra Mittal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मककानतिन्कन्तीनिककर मल गा गा वह 6/ आधुनिक भारत जहांदार शाह ने अपने अल्प शासनकाल मार्च 1712 से फ़रवरी 1713 में शासन को सुचारु रूप से चलाने के प्रयास किए। उसने जजिया कर हटा दिया। उसने आमेर के जयसिंह को मिर्ज़ा राजा सवाई जयसिंह की पदवी दी और उसे मालवा का सूबेदार बनाया। मारवाड़ के राजा अजीतसिंह को महाराजा की पदवी दी गई और गुजरात का सूबेदार बनाया गया। इतना ही नहीं जाट नेता चूशभन व छत्रसाल बुंदेला से भी उसने मैत्री की। साहू से भी संबंध ठीक करने चाहे और कुछ शर्तों पर दक्‍्कन के चौथ व सरदेशमुखी के अधिकार दिए। परंतु सिक्खों के प्रति दमनकारी नीति चलती रही। उसने जागीरदारों की बढ़ती हुई शक्तियों को भी भियंत्रित करना चाहा। इससे मनसबदार वज़ीर के विरुदूध हो गए और वे सम्राट के कान भरने लगे। परिणामस्वरूप सम्राट भी चापलूसों के साथ मिल गया और वज़ीर को हटा दिया। शीघ्र ही जहांदार शाह के भतीजे फर्सखसियर ने सैयद बंधुओं की मदद से जहांदार शाह की हत्या -करवा दी और स्वयं शासक बन गया। फर्सखसियर के शासनकाल 1713-1719 में सैयद बंधुओं- अब्दुल्ला खां और हुसैन अली खां का राजनीतिक दबदबा रहा। वे साम्राज्य निर्माता के रूप में जाने गए। वस्तुत। फर्रखसियर के पिता अज़ीम- उस-शान के प्रभाव से ही वे दीनों क्रमश इलाहाबाद और बिहार के नायब सूबेदार बने थे। फर्सखसियर की माता के कहने पर ही उन्होंने फर्खसियर के लिए कार्य किए। अतः उन्हें पुरस्कृत किया गया और अब्दुल्ला खां को वजीर और हुसैन अली खो को मीरबख्शी जैसे महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया। सैयद बंधुओं ने शासन को मज़बूत बनाने की कोशिश की। उनका संघर्ष राजपूतों सिक्खों और जाटों से हुआ किंतु राजपूतों की शक्तिः का दमन न हुआ। हुसैन अली खां ने माखादु के अजीतसिंह के खिलाफ युदूध किया और उसे संधि के लिए मजबूर किया। बंदा बहादुर के नेतृत्व में सिक्खों का प्रभाव बढ़ रहा था। उन्होंने गुरुदासपुर के किले में अपनी सुरक्षा कर ली। दिसंबर 1715 में एक भारी संघर्ष के बाद मुगलों ने किले पर विजय प्राप्त की। इस विजय का चहुँमुखी प्रभाव कायम करने के लिए बंदा बहादुर और उसके सैकड़ों समर्थकों को लोहे के पिंजरों में कैद कर दिल्‍ली में घुमाया गया और बाद में मार दिया गया। चूरामन अब मुगलों के विरुदूध हो गया था। उसके विद्रोह को दबाने के लिए सवाई राजा जयसिंह को भी भेजा गया परंतु 1718 में दोनों में संधि हो गई। फर्सखसियर अयोग्य कायर और विश्वासघाती शासक था। उसने सैयद बंधुओं के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए उन्हें ही रास्ते से हटाना चाहा पर सैयद बंधु और धूर्तता में कम न थे। अत उन्होंने फर्सखसियर को ही अपमानजनक ढंग से मार दिया। फर्सखसियर के पश्चात सैयद बंधुओं ने दो राजकुमारों को गद्दी पर बिठाया। ये दो राजकुमार थे-रफ़ी-उद्‌-दरजात और रफ़ी-उद-दौला। इनका शासनकाल बड़ा अल्पकालीन रहा और दोनों की त्तपेदिक से मृत्यु हो गई। सैयद बंधुओं ने अब मुहम्मद शाह को शासक बनाया जिसने 1719 से 1748 तक शासन किया। मुहम्मद शाह को सैयद बंधुओं ने शासक बनाया परंतु सैयद बंधु विरोधी गुट के तूरानी अमीरों के गुट ने उनको ही मारने का षड्यंत्र किया। अक्तूबर 1720 में हुसैन अली खां का वध कर दिया गया और बड़े भाई अब्दुल्ला खां को भी नवंबर 1720 में बंदी बना लिया। 1722 में कारागार में ही उसको ज़हर देकर मार दिया गया। मुहम्मद शाह भी एक अयोग्य कायर और विलासी शासक था। उसे इतिहास में मुहम्मद शाह रंगीले के नाम से भी जाना जाता है। उसके शासनकाल में मुगल साम्राज्य का पतन तेजी से हुआ। एक-एक कर के भारत के विभिन्‍न प्रदेशों में अर्धस्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। दक्कन में निज्ञाम-उल-मुल्क अवध




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