आधुनिक भारत | Adhunik Bharat.

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Adhunik Bharat. by शंकर दत्तात्रेय जावड़ेकर - Shankar Dattatraya Javdekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट्िन्दुस्तान क्यों श्र केसे जीता गया १ १७ समभनें लगे थे कि नादिरशाइ जेंसे ईरानी लुटेरे से दिल्‍ली के तख्त को बचाने की जिम्मेदारो हमपर है। बाजीराव की मृत्यु के बाद राघोचा दादा ने झ्रटक पर श्पना भरडा गाड़ा, जिससे उत्तरी भारत के मुसलमान श्र राजपूतों को यह डर हुश्रा कि दिल्‍ली का. तख्त दक्षिण के हिन्दुश्रों के कब्जे में चला जायगा; इसलिए, मुसलमान रोहिलों ने अहदमदशाद द्रब्दाली जेसे को बुलाकर इस बात की कोशिश को कि इस दक्खिनी साम्राज्य की रोक हो श्रौर दिल्‍ली का तख्त मुसलमानों के हाथ से न जाय । इघर यह उथल - पुथल हो रही थी, उधर बंगाल श्रौर मद्रास के समुद्र - तट पर ग्रे ज व्यापारी अपनी राजनीति के खेल खेल रहे थे | मराठों श्रौर सिक्खों ने मुसलमान साम्राज्य के खिलाफ बगावत खड़ी कर उपने स्वतन्त्र राज्य कायम कर लिये थे । यह खबरें बंगाल के हिन्दुओं तक पहुँचती रददती होंगी, इससे श्रनेक मतों में सुसलमान सत्ता के खिलाफ भाव पैदा हुए हों तो ्राश्चयें नहीं; परन्ठु मराठों के हमले बंगाल 'पर होने के कारण वहाँ के व्यापारी धनियों पर एक नई श्रापत्ति श्ाई मालूम हुई होगी । इन हमलों का मुकाबला करने के लिए वहाँ के नवाब इन सेठ -साहूकारों पर जुल्म करके, इन्हें तंग करके, झ्रार्थिक सहायता - लेते होंगे और श्रगर मराठों की जीत हो गई तो भी उनकी लूटमार तर मनमानी का डर रहा होगा । ऐसी स्थिति में बंगाल के व्यापारियों ने मुसलमान शासकों श्रौर नवात्ों के खिलाफ बगावत खड़ी करने में अंग्रेज व्यापारियों को सहायता दी हो श्र मध्यम वर्ग के लोगों को कुछ समय तक झ्रंग्रेजों का शान्ति-पू्ण शासन ज्ञालिम शरीर विदेशी जमींदारों के ज्नास से नचाने श्रौर छुड़ाने के लिए. ईश्वरीय देन है, ऐसा लगा हो तो श्राश्चय नहीं । परन्तु यह भावना हिन्दुस्तान के सब प्रान्तों में सवंत्र नहीं थी क्योंकि उन्दीं दिनों एक ब्रिटिश गवर्नर सर जॉन माल्कम ने लिखा है -- 'हमारा राज्यविस्तार कुछ व्यापारी-वरग श्र अत्यंत दरिद्र और श्रक्षित लोगों के लिए. श्रनुकूल हुआ है, परन्ठु.हिन्दुस्तान के उच्च - वर्ग तर सेनिक - वर्ग पर उसका चहुत ही प्रतिकूल परिणाम हुआ है |? के क०७छ8 ०00 घाह. औतापपंपंबध्तधिणत एव 1तांध छफ हिए उणेव कणा0एपाएए, वा 1, ?घ8्ू० 139 .




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