कामायनी की टीका | Kamayani Ki Tika

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Kamayani Ki Tika by विश्वम्भर मानव - Vishwambhar Manav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ कामायनी की टीका यहाँ कबि ने करका घन! के द्वारा बाह्य जगत से और (निगूढ ~, के द्वारा अंतर्गत से उदाहरण लिया है। चिता के ये दोनों पत्त स्वाभाविक हैं | वह बाह्य परिस्थितियों से उत्पन्न होती है ओर अंतर्जंगत में चस जाती है | _/ बुद्धि मनीषा मति--डद्धि ( ?#८००४०॥ ) भले बुरे का निश्चय कराने वाली शक्ति | मनीषा ( <710916026 ) ज्ञन। मति ( (0|9- 7107) सम्मति, राय । आशा ( 1706 ) किसी अ्प्राप्त वस्तु के पाने की संभावना | चिता ( 75167 ) सोच | अर्थ-हे चिंता तुम्हारा ही दूसरा नाम बुद्धि है, त॒म्हें ही मनीषा (ज्ञान) कहते हैं, तुम्हारा ही एक रूप मति है ओर तुम्हीं आशा का आकार धारण कर लेती हो | पर जिस रूप में तुम मेरे हृदय में उदित हुईं हो वह बहुत ही अशुम है; अ्रतः तुम यहाँ से चली जाओ, एकदम चली जाओ | यहाँ तुम्हारा कुछ काम नहीं | वि०- यहाँ कवि ने चिता शब्द्‌ से चितन का श्रथ लिया है | चितन से सत्‌ असत्‌ का निर्णय होता है, ज्ञान उत्पन्न होता है। चितन से ही मनुष्य विवादग्रस्त विषय के संबंध में अपनी कोई धारणा बना लेता है और जब शोक के मध्य स्थिर-बुद्धि से सोचता है, तब आशा को भी प्रित कर लेता है | विस्मृति आ--विस्मृति--भूलना । अवसाद--शिथिलता । नीर- वता--शांति | चेतनता--भावों का उदय | शून्य--सूना हृदय । . अर्थ--विस्मृत तू आ--जिससे मैं अतीत के उन समस्त না को भूल जाऊ जिन्हें स्मरण करके पीड़ा होती है। आज मेरा मन शिवैः हो जाव--जिससे उसमें कुछ भी सोचने का उत्साह न रहे। मेरे इस धड़कते हृदय को हे शान्ति की भावना, तू एक दम चुप कर दे। ऐस्‍ मेरी सोच-विचार की शक्ति श्राज मेरे सूते हृदय को जडता से भर कर ( जड़ बना कर ) तू कहीं चली जा ।




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