साथी हाथ बढ़ाना | Sathi Haath Badhana

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Sathi Haath Badhana by सोमा वीरा - Soma Veera

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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)्रारा और किनारे प्रताप : লিহা : प्रताप : निशा : प्रताप : निशा : अताप লিহা : प्रताप प्रेम समझ, मैं तुम्हारी हो गई । तुमसे विवाह*** । यह सब किसने कहा तुमसे, यह भूठ है, निशि । मूठ ! उफ ! निशा आज वह पहले वाली भोली निशा नहीं जो तुम्हारे झूठ को भी सच समझ ले । बेक मे अटूट धन रहते हुए भी, कितने डाके डलवाये तुमने ? कितने निरीह बालकों को अनाथ बना डाला ? यही तो था न तुम्हारा व्यापार, जिसके लिए तुम्हें दूर-दूर जाना पड़ता था, क्या यह सब झूठ है ? बोलो ! बोलो? तुमने यह सब क्यों किया प्रताप ? किसलिए ? ऐसा क्‍या लोभ था कि ***.( रोती है) निशा ! होश की बातें करो। होश में ही हूं प्रताप | दुःख तो केवल इतना है कि पहले ही होश क्यों नहीं आया । कटपरे में तुम्हें खड़ा देखने से पूर्व, पुलिस की शहादतें सुनने से पहले ही, मैं क्‍यों न समझ सकी, कि मनुष्य के रूप में. तुम कितने बड़े निशाचर हो । (कुछ हँसकर) तुम सच ही कुछ पगला गई हो निशि। क्या तुम नहीं जानतीं कि निरपराध मनुष्य भी कभी- कभी ऐसे चक्कर में फेस जाता है कि उसे जेल की हवा खानी पड़ जाती है। (व्यंग्य से ) तो तुम निरापराध हो ? : (अधीर स्वर मे) क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं ? न हो, पर एक न एक दिन मैं तुम्हें विश्वास दिला ही दूँगा। किन्तु निशि, अब समय नहीं । चलो, मेरे साथ भाग चलो | मैं तुम्हें लेने आया हूँ । नहीं, नहीं, मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जा सकती। : पगली “* “अरे जेल फाँदकर भागा हूँ। तीन नगरों की




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