साथी हाथ बढ़ाना | Sathi Haath Badhana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
299
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand))्रारा और किनारे
प्रताप :
লিহা :
प्रताप :
निशा :
प्रताप :
निशा :
अताप
লিহা :
प्रताप
प्रेम समझ, मैं तुम्हारी हो गई । तुमसे विवाह*** ।
यह सब किसने कहा तुमसे, यह भूठ है, निशि ।
मूठ ! उफ ! निशा आज वह पहले वाली भोली निशा
नहीं जो तुम्हारे झूठ को भी सच समझ ले । बेक मे अटूट
धन रहते हुए भी, कितने डाके डलवाये तुमने ? कितने
निरीह बालकों को अनाथ बना डाला ? यही तो था न
तुम्हारा व्यापार, जिसके लिए तुम्हें दूर-दूर जाना पड़ता
था, क्या यह सब झूठ है ? बोलो ! बोलो? तुमने यह
सब क्यों किया प्रताप ? किसलिए ? ऐसा क्या लोभ
था कि ***.( रोती है)
निशा ! होश की बातें करो।
होश में ही हूं प्रताप | दुःख तो केवल इतना है कि पहले
ही होश क्यों नहीं आया । कटपरे में तुम्हें खड़ा देखने
से पूर्व, पुलिस की शहादतें सुनने से पहले ही, मैं क्यों न
समझ सकी, कि मनुष्य के रूप में. तुम कितने बड़े
निशाचर हो ।
(कुछ हँसकर) तुम सच ही कुछ पगला गई हो निशि।
क्या तुम नहीं जानतीं कि निरपराध मनुष्य भी कभी-
कभी ऐसे चक्कर में फेस जाता है कि उसे जेल की हवा
खानी पड़ जाती है।
(व्यंग्य से ) तो तुम निरापराध हो ?
: (अधीर स्वर मे) क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं ?
न हो, पर एक न एक दिन मैं तुम्हें विश्वास दिला ही
दूँगा। किन्तु निशि, अब समय नहीं । चलो, मेरे साथ
भाग चलो | मैं तुम्हें लेने आया हूँ ।
नहीं, नहीं, मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जा सकती।
: पगली “* “अरे जेल फाँदकर भागा हूँ। तीन नगरों की
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