अभिनवभारती के तीन अध्याय | Abhinavbharti Ke Teen Adhyay
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
716
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १२ )
“यह कात्यायनका वचन उद्धुत किया है । इससे प्रतीत होता है कि कात्यायनने नाट्यशास्त्र तथा छुन्द
शास्त्रके विषय में कोई ग्रन्थ लिखा था। सागरनन्दीने भी 'नाटअलक्षण रत्नकोश' (इलोक १४४८४-
१४८५) में कात्यायनका उल्लेख किया है ।
अभिनवभारतीमें चतुर्थ ग्रध्यायमें (पू० ११३ पर अभिनवशुप्तने राहुलके उद्धरण तथा
१७० पर यथोक्त राहुलिन तथा ते च यथाह--राहुल,” लिखकर प्रस्तुत किए हैं ।
इन वचनोसे प्रतीत होता है कि राहुलने भी नाटचके विषयमे कोई ग्रन्थ लिखा था।
“अगरनन्दीने भी 'नाटयलक्षणरत्नकोश” में (इलोक २८७३-२१७५) राहुलका उल्लेख किया है।
सागरनन्दीने (बना० ल० ३२२६ मे) एक बार “गर्ग! का भी नाटयकारके रूपमें उल्लेख किया है। पर
उनका कोई उद्धरण नही दिया गया है। सम्भव है इन्होने भी कोई ग्रन्थ लिखा हो ।
शकलीगभ और घण्टक--अभिनवभारतीके द्वितीय भागमे पएू० ४५२ पर अभिनवगुप्तने
शकलीगर्भ” नामक किसी नाटयाचार्यका उल्लेख किया है। भ्रौर उसी द्वितीय भागमे पृष्ठ ४३६ पर
'घण्टकादयस्त्वाहु ' लिख कर “घण्टक' नामक किसी नाटयाचायंका उल्लेख भी किया है। इससे
प्रतीत होता है किं मध्यकालीन नाटयाचार्यों मे 'शकलीगर्भ तथा 'घण्टक ने भी नाटक विषयपर
उत्तम प्रन्थोकी रचना की थी।
वातिकार--अ्र भिनवग्रुप्तने प्रथमभागके पृष्ठ १७० 'वातिक्कृताप्युक्तम पृष्ठ १७२ पर
यद्वातिक्म्', पृष्ठ २०९ पर “श्रीहर्षस्तु', पृष्ठ २१० पर “उक्त च वातिके' श्रादि शब्दोसे श्रगेक बार
श्रौर श्रनेक प्रकारसे वातिककारका उल्लेख किया है। सागरनन्दी (ना० ल० ३२२४ इलोक)
तथा शारदातनय (भावप्रकाशन २३८) ने हर्ष-विक्रम नामसे वातिककारका उल्लेख किया है।
इससे प्रतीत होता है कि हफ॑ अथवा हर्ष विक्रम नामके कोई विद्वान् इस वातिकके रचयिता थे ।
-यह वातिके नाट्यशास्व्रको व्याख्या-रूप न होकर कदाचित् कोई स्वतन् ग्रन्थ रहा होगा-एेसा
विद्धानोका मत है। इसी लिए हमने उन्हे भरतके टीकाकारोमे स्थान न देकर मध्यवर्ती नाट्या-
चायं इस शीषकके श्रन्त्गंत रखा है । राजतरद्धिणी' मे हषेदिक्रमादित्य नामक राजाका श्रौर उनके
दारां कवि मातुगुप्तको सहासन पर प्रतिष्ठित किए जानेका वशंन मिलता है । सम्भव है हषेवातिक
के रचयिता ये ही हर्ष विक्रमादित्य रहे हो ।
सातृगुप्ताचार्य--हर्ष विक्रमा दित्यके साथ मातृगुप्त कविका उल्लेख 'राजतरज्िणी' मे
पाया जाता है। इधर श्रभिज्ञान-शाकुन्तलकी टीकामे राघवभट्टने मातृगुप्ताचायेंके नामसे अनेक
पद्योको उद्धूत किया है। ये पद्य नाटकके पारिभाषिक दशब्दोकी व्याख्याके प्रसजजमे उद्धत किए
गए हैं : जैसे पृष्ठ पाँचपर सूत्रधारका लक्षण, पृष्ठ चारपर नान्दीका लक्षण, पृष्ठ नोपर नाटक-
लक्षणं, और पृष्ठ २७ पर यवनिकाके लक्षणके अवसरपर राघवभट्टने मातृशप्तके ही इलोक
लक्षण रूपमें उद्धत किए हैं। राघवभट्टने पृष्ठ पन्द्रहपर भरतके आारम्भ तथा बीज वाले पद्मोकों
उद्धत करते हुए लिखा है कि---
সঙ্গ बिशेषों मातृशुप्ताचार्येरक्त -- |
क्वचित कारणमाचन्तु क्वचिच्च फलदकशेनम् 1
इन सब उद्धरखोसे प्रतीत होता है कि मातृरप्ताचाय्यने नाट्यशास्त्रके विषयममें कोई
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