हमारा योग और उसके उद्देश्य | Hamara Yog Aur Uske Uddeshya

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Hamara Yog Aur Uske Uddeshya by श्री अरविन्द - Shri Arvind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अधिक उन्नत सिद्धिके लिये आवश्यक अवस्थाओंका उष्तरोक्तर निर्माण होता रहता है। इस कलिकालमें जो बीत चुका है, पर जिसका असर अभीतक चल रहा दे- कितु वट भी अव समापिपर हे--प्राचीन शान ओर संस्कृतिकी सा्वत्रिक हानि हुई हैे। उस ज्ञान ओर संस्कृतिके कुछ टट-फूटे अश ही वेदोंमें, उपनिपदों ओर अन्यान्य धर्मग्रन्थोंमें तथा जगतकी उलझी हुई परंपराओंके रूपमें, हमार पास शेष रह गये है। परंतु अब वह समय आ गया है जब कि ऊपरकी तरफ गति करनेके लिये पहला पग उठाया जाय, अर्थात्‌ एक नवीन सामंजस्थ आर नवीन सिद्धिकी प्राप्तिके लिये प्रथम प्रयास क्रिया जाय । यही कारण है कि मलुष्य-समाज, ज्ञान, धर्म आर सदाचारकी पूणताके छिये आजकल इतने तरहके विचार फल रहे है। परंतु सच्चे सामंजस्थका पता अभीतक अप्राप्त है । केवल भारतवप ही इस सामंजस्यका आविप्कार कर सकता है, कारण यह सामंजस्य मनुप्यकी वत्तमान प्रकृतिका रूपांतर करके ही-उसके पुनव्यवस्थापन- द्वारा नटी--विकसित स्न्िजा सकता हे, आर इस रूपांतरका होना योगके बिना संभव नहीं है । मनुष्य [७ |




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