नागरिक शिक्षा | Naagarik Shiksha

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Naagarik Shiksha by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बविषय- प्रवेश रे अनुचित है । समाज के हित में हमारा हित है- पाठको | तनिक विचार करने से यह बात स्पष्ट हो जायगी ञि यदि हम अपनी भलाई या कल्याण चाहते हैं तो हमें समाज के दूमरे श्रंगों के हित का समुचित ध्यान रखना चाहिए | तुम जानते होगे कि जब हमारे पास-पड़ोस के किमी स्थान में प्लेग श्रादि बीमारी फेल जाती है तो उसका हमारे यहाँ ग्राना कितना सहज्ञ है | यदि हम चाहते हैं कि हम स्वस्थ या तन्दुरुसत रहें तो केवल यही काफी नहीं है कि हम अपने घर को साफ सुन्दर रखें; यह भी ग्रावश्यक है कि हम अपने ग्राम और नगर- निवासियों में स्वाध्थ्य-रक्षा के नियमों का प्रचार करे | हसी प्रकार यदि हमारे चारों तरफ़ अ्रनपढ़, मुख, दुराचारी, गाली- गलोच बकनेवाले या दिन भर लडाई फगड़ा करनेवाले श्रादमी रहते है, तो उनका प्र भाव हमारे मन पर, खासकर छोटी आ्रायु के बालक बालिकाओं के कोमल द्वदयों पर, पड़े बिना न रहेगा। इसलिए हमें अपने पातवालों की उन्नति का ध्यान रखना चाहदिए। उनकी बेहतरी में हमारी भी बेहतरी है। उनके नरक कुंड में पड़े रहने को दशा में, हम स्वग का आनन्द कदापि नहीं ले सकते। इसलिए अपने ग्राम, नगर और देश की भलाई करना प्रत्येक श्रादमी का कतंव्य है। समाज के काय में प्रत्येक मनुष्य को सद्दायक द्दोना चाहिए- बहुत से आदमी सोचते हैं कि दम तो गरोब हैँ, या अ्समथ हैं; हम दूसरों की भज्ञाई क्‍या कर सकते हैं । हमं श्रपना ही निर्वाह करना करिन रहं, फिर दम परोपकार की बात क्या सोचें ! पाठकों | यह कथन अनुचित और अ्रस॒त्य है| प्रत्येक मनुष्य, वह केसी ही श्रवस्था में हो,




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