पूर्वी और पश्चिमी दर्शन | Purvi Aur Pashchimi Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
235
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. अमरनाथ झा - Pt. Amarnath Jha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ঞ চর
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निर्देश भी करना चाहता है| भूमा के अस्तित्व मं उसकी अटल श्रद्धा
है, उसकी सिद्धि के लिए वह तक का मुंह नहीं जोहता; वह उसकी
आवश्यक मान्यता (?०४६५७१४९७) है| अपने इस विश्वास को बनाये
रखने के लिए वह सम्भवतः तकं क परित्याग भी कर देगा। इसके
विपरीत योरुपीय दशन किसी दशा में मात्र श्रद्धा से समझौता नहीं
करेगा | इस विषय में मेरी पूषे और पश्चिम दोनों से सहानुभूति है,
जिसका परिणाम दुविधा और मानसिक सन्तुलन का खोया जाना है।
ऐसी दशा में मेरा विश्वास है कि मेंने पूव ओर पश्चिम दोनों को समान
सहानुभूति देने की चेश्ा की है। फिर भी यदि पाठकों को कहीं-कहीं
भारतीय पक्नपात की गंध मिले, तो आश्रय नहीं। इसके दो कारण हो
सकते हैं | एक तो यह कि भारत के पराधीन होने वे कारण प्रायः उसकी
विभूतियां का उचित मूल्य नहीं लगाया जाता | इस अन्याय का प्रतिकार
करने के लिए. कभो-कभी भारतीय सस्कृति के सोन्दय को अतिरंजित करके
दिखाना पड़ जाता है। दूसरे, संस्कृत ग्रन्थों तक सीधी पहुंच होने के कारण
तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त कोई दूसरी माषा, विशेषतः प्राचीन ग्रीक और
आधुनिक जमन, न जानने के कारण सम्भवतः > योरुपीय दशन को उतने
श्रान्तरिक रूपम नदीं समभः सकता जेसे कि भारतीय दर्शन को किर
भी मेरा विश्वासहै किँ श्रपने को राष्ट्रवाद (५४००72॥5)) के ग्र॑ध-
पन्तपातों से ऊपर रख सका हूं | मेरी ग्रमिलाप्राहे कि मेरे पाठक जहा
मारतीय दशन ओर संस्कृति के उदात्त रूप को ठीक-ठीक हृदयंगम
करे, वहां यारूप के नितान्त साहसपूर्ण विचारकों का, जो मात्र मानव-बुद्धि
का सम्बल लेकर विश्व की गहराइयो में पठ जाते हैं, महत्त्व देखने से
वञ्चित न रहें ।
भारतीय और योरुपीय दर्शन की समानताएं और विषमताएं दोनों
ही विस्मयजनक हैं । श्राश्रय की बात है कि प्राचीन भारतीय विचारकों ने
बहुत-सी उन समस्याश्रों को उठाया जिन पर योरुपीय दशन आधुनिक
काल में बराबर विचार करता रहा है। उदाहरण के लिए वत्तमान सम्बित्-
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