झाँसी की रानी -लक्ष्मीबाई | Jhansi Ki Rani Lakshmibai

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Jhansi Ki Rani Lakshmibai by द्वारिका प्रसाद - Dwarika Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना {५८ रामचन्द्रराब ने राजाकी स्थायी उपाधि पाते ही शासन जज, पूरे तौर पर, अपने हाथ में ले लिया और दो-एक दिन में ही खज्ञाने को लगभग रीता कर शिया | सखूबाई को खजाने का खाली होना इतना नहीं श्रग्वग जितना अपने हाथ से राज्य की बरागडोर का चला जाना। सम्बूबाई ज़रा दली आयु की प्रचण्डत्रेममयी राजमाता थी। मथ ओर चेहरे को शिकनें राजदणड के निरन्तर कठोर उपयोग और क्रोध के ग्रातेशों के व्यवहार की कथा कद्दती थीं। उसकी कठोरता विख्यात थी । सखूबाई से रामचन्द्रराव का राजाहाना नहीं सहा गया। उसने रामचन्द्रराव को मरवा डालने का प्रडयन्त्र रच । भांसी के लक्ष्मी-फाटक के बाहर लक्ष्मी-तालाब के दक्षिण-पश्चिमी सिरे पर महालभ्मी का मन्दिर है] इस मद्टिर के चोपड़े में सखूताई ने अपने लड़के का वध करने के लिण भाते गड्वाग, | गमचन्दररावि का तैरने का बहुत शौक़ था--विशेषक्रर रात में । सखूबाई को विश्वास था कि उस रात रामचदवराव चोपड़े में तैर्ते के लिए मरार लगापगा---ग्रीर ममाम्त हा जायगा । परन्तु लानू करादेलकर नाम के एक লবহাতা युवक ओर मद के उपरोक्त आनन्ठराय की सहायता के कारए राभचद्धराव अच गया। आननन्‍्दराय तो अपने घर मऊ निकल भागा, पर कोदेलकर की दो र्नि चाद्‌ सम्बूत्राह ने मरवा डाला । लानू कादेलकर के तीन दस्र नतिःर धे) वे कोसीसे भा । लालू के देहात्त के कुछ समय उपरान्त इन तीनों के एक एक लड़की हुई। इन बालिकाओं के नाम थे काशी, सुन्दर और मुन्ठर | तीनों बालिकाएँ सुन्दर थों। परन्तु इनका लालन- पालैन बड़ी दरिद्रता में हुआ । सखूबई का क्रोध कोदेलकर ही तक सीमित न था, उसके नातेदार भी आवड्झप्रस्त थे और राज्याअ्य से वश्चित | रामचन्द्रराव अपनी माँ के साथ, इतना सत्र होने पर भी, कंद्रोर बर्ताव नहीं करना चाहता था। परन्तु उसके दानों काका--रुनाथराव




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