संस्कृत कवि दर्शन | Sanskrit kavi Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन प्रस्तुत पुस्तक में संस्क्रत साहित्य के प्रमुख कवियों का परिशालून उपस्थित किया गया हें | आरम्भ में आमुख के द्वारा समस्त संस्क्रत साहित्य की सामान्य विशेषताओं की ओर भी संक्रेत कर दिया गया है । पुरतक के लिखने में प्रमुख रूच्य तत्ततः कवि की विवेचना ही रही हैं, जिससे साहित्य के इतिहास से भिन्न सरणि का आश्रय यहाँ लिया गया है तथापि साहित्यिक प्रव्ज्ञियों और प्रभावों का संकेत करने के लिए टतिहासपरक सरणि को भी कहीं-करहीं अपनाना पड़ा /ै। विवेचना के लिए शास्त्रीय दष्ट्रकोण को अपनाते हुए भी दोखक ने कहाँं-कढीं वयक्तिक विचारों को व्यक्त करना अधिक मटत्वपरूण सकरा है । संस्कृत साहित्य के रसमय अंश को हिन्दी के माध्यम मस उपरिथत कर साहित्यरसिका को संस्कृत कबिया का मूल रचनाओं को ओर उन्मुख करना ही टाखक का प्रमुख सद्य द, किन्तु ननन कवि के परिशीलन में तात्कालिक सामाजिक पारिरिथतियों, दाशनिक्र एवं ऋलात्मक सान्यताओं आदि को उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखा गया हे । कवियों के सम्बन्ध में प्रसिद्ध जनश्रुतियों तथा उनके तिथि-निर्धारण के विषय में विस्तार से संकेत करना इसलिए अनावश्यक समम्का गया है कि इनका परिशीलन से कोई घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं दिखाई पड़ता । कवियों की तिथि के विषय में विस्तार से विभिन्न मतों को न देकर मान्य मत के अनुसार काल-निधारण क्रा संकेत कर दिया गया है। मुझे आशा हे




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