कुल्ली भाट | Kulli Bhat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.4 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मजिल चढ़ने के मुकाबले यहूं अति दुच्ठ था, फिर वहा वेश्या, यहाँ
घमपत्नी । श्रागें वढा । एक का ब्ौर श्राया, सालूम हुमा इस दर में
धूप से हवा मे गर्मी ज्यादा हैं। फिर भी हवा में प्रतिकूल चलना डी
होगा । कालिदास को पढ़ रहा था, याद झाया--“अजयदेकर्था से
मोदिनीम” , बडाई से पैर झाग चढ़ाया, ठकाद़ा जूते न काकर स॑
से ठोकर लो, श्रीर मुह फैला दिया । सोचा, वॉक्स में एव जोड़ा झौर
है नया । तमलली हुई, फिर झागे वढा । एक भोवा श्रौर झाया । भबते
छाता उलटकर दूसरी तरफ तना । हवा के रुख पर करके, सुधारवर
ताड लिया 1
आगे लोन-तदी आयी, जो श्राठ महीन सूखी रहती है, श्रौर जिसमा
विनारे ससार वे श्राधे वेर बदूल है, शायद इसी वारण इस प्रात का
नाम कभी चनौधा था--“बारह कुवर बनोधे केर ।” स्वत ता प्रेम भी
भ्रविव था, छोटो-सी जगह ग वारह कुवर थे । धोती काछदार
जगाली पहनी थी । एक जगह उडी, शरीर यर की बाहा से श्राविगन
किया, न घ्रब्र छोड़े, न तब--' गुला स खार हैं, जा दामन थाम
लेते हैं” याद तो श्राया, पर वडा गुस्सा लगा । सैकडा घाट चुने हुए ।
धोतली उप्पनदुरी हो 'रही थी । छुगति नहीं बनता था 1 देर हो रही थी 1
श्राप्लिर मुटठी से कोछे वो पवडकर सीचा । धोनी में सहस्र-धार गगा
धन गयी, उधर बेर सहन विजय ध्वज ।
चोती कीमती थी ,--शान्तिपुरी, जास समुराल वे लिए सी गयी थी,
जैसे प्रसिद्ध नेखव खास पत्र के लिए लेख लिखते हैं । सा हुई मि गई
झौर हूं। नदी गम स ऊपर भ्राया । बुछ दूर पर वहटा-दमदान मिला । दो
ही मील पर देखा दुद्ा ह। गयी है, जले धूल का सम दर नहाकर निकला
हू । स्टेशन मील-मर रह गया था गाड़ी वा अराटा सुन पडा । अपने श्राप
पेर दौडन लगे । मन ने बहुत कहा, दडी झभदता है। लेकिन जसे पैर व॑' भी
जवान लग गयी हो, भट्ता कुछ वाकी नी रह गयी है ? घर
लौटकर जामोगे, डिदगी-भर गाववाले हसेंगे--वावू बनशर ससुराल चले
थे । हजार हजार सपाट का “ठान तो देखो ।* कहते पर बेतहागा उठ
रहे थे । छाता बगल मे । हाथ मे जूते । सामने मील भर वा कमर ।
बुल्ली भाट / १४
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