अंतर की बात | Antar Ki Baat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अन्तर की बात ই
ओर दूसरी बार जब मैंने गोरी को देखा, वह योवन की
किश्ती पर खड़ी थी | उसका रूप फूटा पड़ता था ओर आंखों की
चंचलता के स्थान पर गंभीरता की एक छाया ने घर कर रखा था ।
में बोला--“गोरी...१”
लाज से वह लाल हो उठी ।
“आज तुम्हें कितने दिनों बाद देखा है...।
गोरी चुप रही ।
“वहाँ क्या मन लगता है, गोरी ? मोटी-मोटी किताबों को
लेकर जब पढ़ने बेठता हूँ तब तुम्हारी याद आ जाती है......।'
गोरी ने सिर का आँचल ओर खींच लिया ।
में बोला-सुना है, तुम्हारे व्याह के लिये तुम्हारे बाबूजी
परीशान हैं. ..मुझे अपने ब्याह में बुलाओगी, गोरी...९”
मेंने देखा, गोरी का चेहरा पीला पड़ गया है ।
( २ )
ओर, एक दिन जब मुझे यह खबर मिली कि गौरी का ब्याह
एक अधेड़ व्यक्ति से कर दिया गया, तो में मानो संज्ञाहीन हो
गया । प्रोफेसर लेक्चर दे रदे थे, किन्तु मेरा मन एक व्यथा से
भर गया था । जाने एक केसा अभाव मेरे प्राणों मे समा गया ।
घर मने पर गोरी की मांसे भट करने गया । उसने आंचल
से आँसू पींछते हुए कहा था--भेया, हम गरीब ओर कर दी
क्या सकते थे? तिलक-दहेज के लिये रुपये कहाँ से लाते ९
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