भस्मावृत चिनगारी | Bhasmavrat Chingari

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Bhasmavrat Chingari by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भस्मावृत्त जिन्गारी ] १३ उसने इस बात को महत्व न दिया। उसे इससे कोई मतल्लप न था । स्थाग शोर तपस्या क्या दूसरी चथीक्ष होती है ! पूसरे बालक के प्रसव से पहले उसकी ज्ली बीमार हो गई । वह बीमारी श्रसाधारणं थी । खचे भी असाधारण था। दो লীন সী থাই तीन हजार रुपया ख़्च हो शया। एक मकान पहले से मिरी था, घूसरा भी गया ।' कोई शिकायत उसे न थ्री। केवल इतना उसने कह---यदि रुपये ले मनुष्य के प्राण बच सकते हैं तो वह किसी भरी सूरय पर मर्गा नदीं | किसी तरह स्री के प्राण बछे । दस दारणं संकट के वाव कलाकार फी प्रस्था श्चौर्‌ भी शोचनीथ हो गई, परन्तु उसकी तथ्स्थता में क्रियी प्रकार का परिवतंग भ प्राया । फटी चप्पस्मै भ भी वु इतना टी सन्सुष्ट धा जित्ता ग्हैसकिष के परपशू' पहने रहने पर । अनेक दिन तक घह दिखाई ने दिया। सुना पत्र चित्र में व्यस्त है। विप्त न जाढने के विचार से जसके घर भी न गया । मालूम होने पर कि नया चित्र पूरा ही गया, वेखने गया । चित्र का सांस ॥-जम्सनारण |) चित्र भं धसूतिग्रह फां स्श्य था और शेय्या पर स्वयं उसकी खी। रोगिणी फे शीर्ण, चरम पीढ़ा से व्यधित सुख पर खझुत्यु का आतंक्र | उसकी आँखें मपजात शिशु की 'शोर लभी थीं जो उसकी पीड़ा और थन्न॑णा के सेव से नक्षत्र की भांति अभी ष्टी प्रकट हुआ था। प्रसूता के नेच प्रभातके श्राकाणा की भोति कृष्से উ ্রল্রতী প্র रौर उसकी पुतल्ियौँ छुकते एये तारों की श्राँति निस्सेजं हो रही थीं। उस विभ इस ছিল দী' ক সুখ বাসা । पुं फ ककमा भी सम्भवम था) पर्शु छतेकं धिन तफ प्रू चित्र भीं प्दधेति কিটিপ सेन उसरी । ' ৮ ५८ ४५ ! पसरमावएरपत्नों में पढ़ा, बेबईढ़ में झगित भारतीय খিদলান্থাদী উর | 1.




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