मुक्ति - द्वार | Mukti Dwar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भुक्ति-द्वार ই
ई) कबम्या चली गई आकर--पुन्न सुरक्षित थे---तेरह, छः, तीन और
दे ष्ष की अवस्था ही के ।
नारी-- हृदय की भीषण उपेज्षा होती है कायस्थ-जाति ही मे ।
पुरुष अपनी पत्नी के देहान्त के बाद एक नहौं-कई विवाह कर सकते हैं
और पत्नी अपने पति--प्रथम पति से बिछुड़ जाने के पश्चात् किसी
ओर झआँक-काोँक तक नहीं सकती | पुरुष का कार्य शराब पीना, माँस
खाना, बाल्लें बनाना, पत्नी का श्रपराध म होने पर भी निरन्तर ही लातें
लगाना ही है--इसलिए कि प्रथम पत्नी मरे--दूसरी आए---दहैज
मिले और फिर मिले पीने को घही शराब--खाने को बकरे का गोश्त
ही | दहेज, शराब, अथ्याशी की साध--नारी--तिरस्कार--हैं. यही
कायस्थ-जाति के पुरुष-वर्ग को कहानियाँ--रवानियाँ--ज्वानियाँ ।
मोहकलालजी उक्त प्रकृति कै ब्यक्ति नहीं थे। भूल हुईं थी उनसे
यही एक कि सभी कै आदेशों से उनके मन की मौज बढ़ती ही गई--
दाद् की भाँति श्रौर उनके जीवन में तीसरी पत्नी का प्रवेश हो
गया था ।
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