मुक्ति - द्वार | Mukti Dwar

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Mukti Dwar by महेश शरण जौहरी - Mahesh Sharan Jauhari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भुक्ति-द्वार ই ई) कबम्या चली गई आकर--पुन्न सुरक्षित थे---तेरह, छः, तीन और दे ष्ष की अवस्था ही के । नारी-- हृदय की भीषण उपेज्षा होती है कायस्थ-जाति ही मे । पुरुष अपनी पत्नी के देहान्त के बाद एक नहौं-कई विवाह कर सकते हैं और पत्नी अपने पति--प्रथम पति से बिछुड़ जाने के पश्चात्‌ किसी ओर झआँक-काोँक तक नहीं सकती | पुरुष का कार्य शराब पीना, माँस खाना, बाल्लें बनाना, पत्नी का श्रपराध म होने पर भी निरन्तर ही लातें लगाना ही है--इसलिए कि प्रथम पत्नी मरे--दूसरी आए---दहैज मिले और फिर मिले पीने को घही शराब--खाने को बकरे का गोश्त ही | दहेज, शराब, अथ्याशी की साध--नारी--तिरस्कार--हैं. यही कायस्थ-जाति के पुरुष-वर्ग को कहानियाँ--रवानियाँ--ज्वानियाँ । मोहकलालजी उक्त प्रकृति कै ब्यक्ति नहीं थे। भूल हुईं थी उनसे यही एक कि सभी कै आदेशों से उनके मन की मौज बढ़ती ही गई-- दाद्‌ की भाँति श्रौर उनके जीवन में तीसरी पत्नी का प्रवेश हो गया था ।




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