संघर्ष | Sangharsh

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Sangharsh by क. म. पानीक्कर - K. M. Panikkarकृष्ण मेनोन - Krishn Menon

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कृष्ण मेनोन - Krishn Menon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संघर्ष ७ था कि दुनिया में उनका कोई सहारा नहीं । पयज्ञी के प्रताप और कीति को सोचकर उस युवक का हृदय आनन्द से भर आता था। केरक की आजादी के लिए अपना सब-कुछ छोड़कर और सब प्रकार के संकट झेलकर लड़ने वाले उस वीर पुरुष की याद आते ही वह फूला न समाया । उसने एक-एक करके मन में उन बहादुरों का हिसाब लगाया जो राजा को तेता मानकर ईश्वर के समान उनकी पजा करते थे । वह्‌ भी निकट भविष्य मं उनमें से एक हो जायगा ओर यश प्राप्त कर सकेगा । यह्‌ खयाल अते ही संतोष सं वह अपने-आपको भूल गया । भाईयों की मत्य्‌, घर का जल जना या उन दोनों भाई-बहन का निरा- धार दहो जाना उस समय उसे याद न आया । उसका एक-मात्र विचार साहस- पूणं कामो के द्वारा प्रशस्ति प्राप्त करके अपना रास्ता साफ करने का था । युवती मन-ही-मन यह सोच रही थी किं यह्‌ महाशय कौन हैं, जिन्होंने उसकी और उसके भाई की रक्षा की है ? अगर वह ল आता तो वे दोनों रास्ते पर पड़े-पड़े मृत्यु का सामता करते या इससे भी बदतर जीवन बिताने को बाध्य होते । उसका व्यायाम से सुदृढ़ शरीर, उसको गम्भीरता, उसके मुख की ज्योति, उसका पौर्ष--इस सबसे उस युवती को बहुत जल्दी मालूम हो गया कि वह एक साधारण व्यक्ति नहीं है । उसने अनू मान किया कि बह राजा साहब के दल्ल का है। क्योंकि उसे उस व्यक्ति की बातों से एसा छगता था कि बह अवश्य ही अम्पू नायर का कोई मित्र है। इससे चन्त्रोत बाबू से भिलने की इच्छा प्रकट की है । इसलिए यह एक साधारण व्यक्ति तो नहीं, बल्कि किसी सामंत-कूल का होगा । और एक बार उसको अच्छी तरह देखकर उसका रूप अपने मन में प्रतिष्ठित करने के लिए उण्णिनडूडग ने उसकी तरफ मूह फेरा तो मालूम हो गया कि वह भी' उत्सुकता से उसकी तरफ ही देख रहा हैँ । उसने तुरन्त आँखें नीची करके अपने भाई से कहा--- “कम्मू, तुम करू मुझे झोड़कर इनके साथ चले जाओगे । फिर में क्यों करूगी ? क्या मेरा हमेशा मामी के साथ रहना ठीक है ?” “बहन,” कम्मू ने सानन्‍्त्वना के स्वर में कहा--“चिन्ता न करो। यदि में अम्पू बाबू के आश्रय में रहें तो वे हमारी सुविधा और सुरक्षा के लिए सब कुछ करेंगे न ? यहाँ उनके कई मित्र और विश्वास-पात्र हैं। अगर मैं श्रद्धा




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