संत तुकाराम | Sant Tukaram

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Sant Tukaram by हरि रामचंद्र दिवेकर - Hari Ramchandra Divekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मदर मतमर्म हक कंबे पर पताका हाथ में काँक घर मुख से विझलल-विडल यह नामपोष . इस प्रकार खास कर झाज़ाढ़ और कार्तिक चुदी एकादशी के दिन दूर- दूर से मक्त लोग श्राने लगे । इस प्रकार विझल-दर्शन के लिए पंडरपुर आना बारी के नाम से प्रतिद हुआ श्र इन वारररी अर्थात्‌ बारी करनेवाले लोगों का एफ झलग ही पंथ बन गया । इस विछल-मक्ति के संप्रदाय को श्रीशनेश्वर महाराज के कारण बड़ा मदाल्व प्राप्त हुआ । औजञनेरवर महाराज एक बड़े मारी विद्या खाधु-पुरुष थे । इनके गुरु इनके दो बड़े भाई निदृत्तिनाथ ये । यद्यपि निवृतिनाय को साइनीनाथ के द्वारा नाथ-संप्रदाय की दौक्षा माप्त हुई थी तथावि नावपंथी योग की पेदा शाने्वर ने मगवद्धक्ति का ही अधिक विस्तार किया । आपने पंद्रह व की श्रवस्था में भरीमद्धगवदू गीता पर एक बड़ी विस्तृत और विद्चचापूस मावयोधिनी नामक मराडी दीका लिख डाली । शनेश्वरी नान से यही टीका वड़ी मतिद हे । मराठी भाषा के सर्वमान्य श्ायप्रंध का मान इसी प्रंथ को दे श्र बार करीपंध का तो बह मुख्य पंथ ही माना गया दे । इस अ्रंथ में मग- बद्धक्ति को योग या शान से श्रधिक मदत्य का बतलाया गया है | कर्म की हो इवमें झन्छी दी मुगल उड़ाई है श्ौर उठी के साथ-साथ कमेंड जाझयों की । इसका एक कारण यइ था कि औशानेश्वरजी को क्मठ आाधों दारा बड़ी तकलीए उठानी पढ़ी थी। शानेर्वर के पिता बिल ंत झपनी तकथ श्ववरपा में संतति उसन करने के पाले दी धपनी पानी का त्वाग कर संन्याल-दीक्षा ले चुके थे । परचात्‌ श्रपने गुरु की ाशावुखार उन्दों ने कर से गदस्पाभम में प्रवेश किया । इस दितीय अवेश के बाद उन्हें निवूत्ति ज्ञानेश्वर श्रौर सोपान्‌ नाम के तीन पुत्र और घकाबाई नाम की कन्या हुई । इस रोति से संत्याही के पुत्र होने के कास्य ये चारों जातिः्यदिष्कत ये । इसी श्रपमान के कारण भी शानेश्वर जी का चित्त मक्ति-माग की शोर छुका | उन्होंने श्रपनी




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