और खाई बढती गई | Aur Khai Badhati Gai

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Aur Khai Badhati Gai by भारतभूषण अग्रवाल - Bharatbhushan Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| महाभारतकी साँझ २३ भीम--इस दुराचारीके साथ एसा व्यवहार विलक्‌ल प्रनावर्यक है । दुर्योधिन--में तो कह चुका हूँ युधिष्ठिर ! मुझे विरवित हो गयी है । मेरी समझमें आ गया है कि अब प्राणोकी तृप्तिकी चेप्टा व्यथ है । विफलताके इस मरुस्थलम अब एक बूँद आयेगी भी तो सूखकर खो जायेगी । यदि तुम्हें इसीम सत्तोष हो कि तुम्हारी महत्वाकाक्षा मेरी मृत देहपर ही अपना जय-स्तम्भ उठाये तो फिर यही सही । [सॉस लेकर] चलो, यह्‌ भी एक प्रकारसे अच्छा ही होगा । जिन्होन मेरे लिए अपने प्राणोकी बलि दी, उन्हें म॒ह तो दिखा सकूगा। [रुक कर| अच्छी बात है युधिष्ठिर ! मुझे एक गदा दे दो, फिर देखो मे रा पौरुष ! सजय---इस प्रकार महाराज । पाण्डवोनें विरवत सुयोघनको युद्धके लिए विवश किया) पाण्डवोकी श्रोरसे भीम गदा लेकर रणम उतरे ! दोनो वीरोमं घमासान युद्ध हीनं लमा! सुयोघनका पराक्रम सवको चकित कर देता था) एसा लगता था मानो विजयश्री अ्न्तमे उन्हीका वरण करेगी । पर तभी श्रीकृष्ण के सकैत पर भीयने सुयोघनकी जघामं गदाका भीषण प्रहार किया 1 कुरुराज श्राहत होकर चीत्कार करते हृए गिर पड । घृतराष्ट्र--हा पुत्र ! इन हत्यारोन গম तुम्हे परास्त किया 1 सजय धै भरे इतने उर्कट स्नहका एसा ग्रन्त 1 ग्रोह्‌ 1 मे नही सह्‌ सक्ता 1 मं नही सह सकता 1 संजय--घये, महाराज, धेयं 1 कुरुकुलके इस उगमगाते पोतके ক্গন ्रापही कर्णघार है । घृतराष्टर--सजय 1 बहलानेकी चेप्टा न करो। [रुक कर] पर ठीक कहा तुमने ! कु कुलका कर्णधार ही अन्धा है, उसे दिखाई नही देता ! संजय--महाराज ! ठीक यही वात सुयोधनने कही थी। घृतराष्टू---वया ! क्या कहा था. सुयोधनते ? कब.?




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