और खाई बढती गई | Aur Khai Badhati Gai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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महाभारतकी साँझ २३
भीम--इस दुराचारीके साथ एसा व्यवहार विलक्ल प्रनावर्यक है ।
दुर्योधिन--में तो कह चुका हूँ युधिष्ठिर ! मुझे विरवित हो गयी है ।
मेरी समझमें आ गया है कि अब प्राणोकी तृप्तिकी चेप्टा व्यथ
है । विफलताके इस मरुस्थलम अब एक बूँद आयेगी भी तो
सूखकर खो जायेगी । यदि तुम्हें इसीम सत्तोष हो कि तुम्हारी
महत्वाकाक्षा मेरी मृत देहपर ही अपना जय-स्तम्भ उठाये
तो फिर यही सही । [सॉस लेकर] चलो, यह् भी एक प्रकारसे
अच्छा ही होगा । जिन्होन मेरे लिए अपने प्राणोकी बलि दी,
उन्हें म॒ह तो दिखा सकूगा। [रुक कर| अच्छी बात है
युधिष्ठिर ! मुझे एक गदा दे दो, फिर देखो मे रा पौरुष !
सजय---इस प्रकार महाराज । पाण्डवोनें विरवत सुयोघनको युद्धके लिए
विवश किया) पाण्डवोकी श्रोरसे भीम गदा लेकर रणम
उतरे ! दोनो वीरोमं घमासान युद्ध हीनं लमा! सुयोघनका
पराक्रम सवको चकित कर देता था) एसा लगता था मानो
विजयश्री अ्न्तमे उन्हीका वरण करेगी । पर तभी श्रीकृष्ण
के सकैत पर भीयने सुयोघनकी जघामं गदाका भीषण प्रहार
किया 1 कुरुराज श्राहत होकर चीत्कार करते हृए गिर पड ।
घृतराष्ट्र--हा पुत्र ! इन हत्यारोन গম तुम्हे परास्त किया 1 सजय धै
भरे इतने उर्कट स्नहका एसा ग्रन्त 1 ग्रोह् 1 मे नही सह्
सक्ता 1 मं नही सह सकता 1
संजय--घये, महाराज, धेयं 1 कुरुकुलके इस उगमगाते पोतके ক্গন ्रापही
कर्णघार है ।
घृतराष्टर--सजय 1 बहलानेकी चेप्टा न करो। [रुक कर] पर ठीक
कहा तुमने ! कु कुलका कर्णधार ही अन्धा है, उसे दिखाई
नही देता !
संजय--महाराज ! ठीक यही वात सुयोधनने कही थी।
घृतराष्टू---वया ! क्या कहा था. सुयोधनते ? कब.?
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