जिनखोज तिन पाइयाँ | Jin Khoj Tin Paiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हृदय-परिवत्त न
एक वार रेलके सफरमे हदय-परिवत्तंन सवधी प्रसग, चल निकला तौ
एक थानेंदारने अपने जीवनकी एक घटना इस प्रकार सुनाई---
“मेरे पडोसमे एक भिखारी भीख माँग रहा था । पडोसीने दुत्कार
दिया तो वह मेरे मकानसे गुजरा । मुझे उसकी हालतपर रहम आ गया ।
मेने आवाज देते हुए कहा- बाबा ठहरो, खाना भेजता हूँ ।”
मगर वह मेरी आवाजको अनसुनी करके बढता गया । मेने समझा
उसने सुना नही है । अत चौक रको रोटी दे आने को भेजा । मगर उसने रोटी
लेनेसे इनकार कर दिया । नौकरने इसरार किया तो उसने जवाब दिया-
जो लोग रिशवत लेते हे, में उनके यहाँका अ्रन्न-जल ग्रहण नही करता ।
नौकर उसे गालियाँ वकता चला आया और मुझे भी उसके वे जमले
सुनाये । में तो सुतकर कट-सा गया । थानेदारकी कोई इस तरह उपेक्षा
करे और वह भी दर-दरका भिखारी । मन आत्मग्लानि और क्षोभसे
भर-सा गया । रह-रहकर कभी श्रपनेपर, कभी नौकरपर श्रौर कभी उस
भिखारीपर, ताव आते लगा ।
एसे गधको गुलकन्द दिखाया ही क्यो जाय, जो उसे देखकर आँख फोड
दी, आँख फोड दी चिल्ला पडे । क्या जरूरत थी धन्ना सेठ बनने की, और
अगर मुझसे गलती हो भी गई थो तो यह कम्बख्त नौकर उसे रोटी देने
चला क्यो गया ? किसी बहाने काममे लग जाता, बात आई-गई हो जाती,
और चला भी गया था, तो जो उस दीवानेने कहा, उसे मुझसे कहनेकी क्या
जरूरत थी. ? श्रौर उस मंगतेकी शान तो देखो भीखके दूक श्रौर बाज़ारमें
उकार 1
इसी रिशवत॒की बदौलत पत्नी वलाएँ लेती है, साहबजादे नवाब वने
फिरते है, यारोका जमघटा लगा रहता है, विरादरी और रिक्तेदारियोमे
भ १७
User Reviews
No Reviews | Add Yours...