काठ का उल्लू और कबूतर | Khat Ka Ulloo Aur Kabootar

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Khat Ka Ulloo Aur Kabootar by केशव चन्द्र वर्मा - Keshav Chandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काठ का डल्लू और कबूतर मुझको भी बड़ा श्रादमी होते देखना चाहता है तो तुझे यह राज़ तो बताना ही पड़ेगा !? रतनलाल ने कदा कि ए मेरे नौनिदाल ! तेरे मन मं शायर बनने की सच्ची लगन है और तू चाहेगा तो सच्चा शायर बन जायगा लेकिन उसके लिए तुमे एक बात करनी ही पड़ेगी ! शिवचरन ने पूछा--वह क्‍या है !? रतनलाल ने कहा--वह चीज़ ই मुहब्बत ! ब्रिना मुहब्बत किए तू शायरी नहीं कर सकता 1, शिवचरन ने कहा--ए रतंनलाल इसको तू समझा कर बता ताकि हर आदमी इसे जान जाय ओर इससे मुनासिब फ़ायदा उठा सके !? रतनलाल ने जवाब देते दए कदा फि जब उसे शायरी करने का शौक चाया तौ उसने श्रपने घर के बगल में रहने वाले डाकखाने के बड़े बाबू पंडित मोतीचंद जी की कुँवारी कन्या 'इसनेहलता? से अपना इश्क किया | शिवचरन की जानकारी बढ़ाने के लिए. रतनलाल ने समभाते हुए, बताया ए दोस्त ! आजकल मुहब्बत करने का सबसे अच्छा तरीका है कि घर के आसपास नजर घुमाओ। कह्दा गया है कि कखूरी बहत दर नहों रहती लेकिन हिरना उसे खोज नहीं पाता ! मुहल्ले के बाहर इश्क करन से ख़तरें बढ़ जाते हैं ओर मेलमिलाप की गंजाइश कम हो जाती है। इसीलिए मैंने 'इसनेहलता? से काफ़ी दिन मुहब्बत की और उसी को सह्दारा बनाकर शायरी करता रहा लेकिन जत्र उसकी शादी हो गई और वह अपनी ससुराल चली गई तब्रसे मैंने शायरी करना तो छोड़ दिया क्योंकि कोई सुनने वाला ही नहीं था, लेकिन में 'मिश्टर देवदास? की तरह पगलाया नहीं हूँ, अल्कि दूसरी की तलाश में हूँ ! सो ० मेरे शायर-तत्रीयत दोस्त ! तू यह अच्छी तरह जान ले कि शायरी सिद् मुहन््रतनामे का दूसरा नाम है। जिसने मुहब्बत नहीं को, यह शायरी कया ख़ाक करेगा ! श्रौर जिसने मुहब्बत की यह बंटी बजाई उसके लिए. शायरी का दरवाजा अपने श्राप खुल जाता दै। तो ए शिवचरन ! तुम शायर बनने के लिए मुहब्बत करना शुरू करो !? द काठ के उल्लू ने कबूतर से आगे कहा--ए मेरे भाई, उस आवारा लड़ंके ने जो डोरा मेरे मालिक पर फेंका, वह उस पर एकदम जमकर बैठ गया और सेरा मालिक उसी के चक्कर में फँसता चला गया । अब सुन कि दास्तान भटद्दारदद




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