वीणापाणि के कम्पाउण्ड में | Vinapani Ke Kampaund Men

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Vinapani Ke Kampaund Men by केशव चन्द्र वर्मा - Keshav Chandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्यार का रोग चह थे मेरे दोस्त मुझे अक्सर चौराहे पर मिल जाते घटों खड़े खड़े हम दोनों कुल रिक्शों की लिस्ट बनाते अच्छे चगे भले एक दिन सुबह सुबह ही आये घर पर खोये खोये से गुमछुम से लगे बताने मुझसे आ कर-- “जाने क्‍या हो गया मुझे है ? नित चिन्तातुर हैँ मै व्यौकुल आँखें पुरनम,दिल कुछ धुक घुक,किसी व्यथा में जीता घुल घुल मैंने उनकी नब्ज़ थाम छी-बोले 'जीयन मार हो गया।! समझ गया मै रोग मियोँ का कहा-आपको प्यार हो गया।! बोणापाणि के कम्पाउण्ड मे श्र




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