बाल - निबंधमाला | Baal Nibandhamala

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Baal Nibandhamala by गंगाप्रसाद - Gangaprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सचाई ५ मे तरकारी लेने जते हा तो केवल विश्वास पर ही कुंजडी तुमका तरकारी ताल देती है । यदि उसे यह शङ्का हो कि तुम ट बोलते हो तो वह पहले पैसा लिये बिना तरकारी नदे श्चौर तुम बिना तर्कारी लिये पसा न दो; इस तरह कभी कामन चले । 'जंब एक बार मनुष्य झूठ बालता है तब. उसकी कोई प्रतीति नहीं ऋरता ओर यदि वह सच भी कहता हो'ता भी भूठ सममते है । एक कवि कहता हैः-- (माड ककारे पीर वश, मिस समम सब काय । ' तुम सबने एक गड़रिय के लड़के का क्रिस्सा सुना होगा, जो भूट मूट चिल्ला उठता था कि भेड़िया आया, भेड़िया आया | एक दिन भेड़िया सचमुच आ गया। परन्तु चिल्लाने पर किसी ने उसका विश्वास न किया ओर उसकी भेड़ां को भेड़िया ले गया। अगर वह झूठ न बोलता ता उसकी यह दशा न होती । इसी तरह जो लड़के सेज्ञ कूठ बोलते हैं उनका मास्टर साहब विश्वास नहीं करते और चाहे वे सचमुच ही बीमार क्‍यों न हों, उनकी बात भूंठ समझ कर -उनका सज़ा दी जाती है। इसलिए सचाई विश्वास की जड़ है | परमात्मा ने मनुष्य का ज़बान एक बहुमूल्य रत्न दिया है। इसलिए चाहिए कि भूठ बोल कर हम ज़बान का अपवित्र न करें। मनुज़ी महाराज़ कहते हैं कि ज़बान का सत्य सैं पंरविंत्र करनी चाहिए। जीं मनुष्य पान से मुँह का सुशोमित करते हैं वे भूलते हैं। मुख का भूषण तो सत्य ही है । जो विद्वान्‌ ह वे केक्ल इसी भूषण के धारण करते है । देखे भ्रीमहाराज हरिश्चन्द्र जी ने श्चनेक क्ट सहे, परम्तु सत्य से न डिगे। इसी लिए आज तक उनका नाम चला आता है। जो मनुष्य सत्यवादी है उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है । परन्तु भरूठ बोलनेबाला चाहे कितने ही भूषण क्योन




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